बुराईयों की जड़ - शराब

Posted on 05-Oct-2015 05:25 PM




यह अरबी का शब्द है जिसका अर्थ शर-माने, बुराई तथा आब माने पानी अर्थात् वह पानी जो बुराईयों की जड़ है। महात्मा गांधी ने शराब को सभी पापों की जननी कहा है शराब सीधे व्यक्ति के मस्तिष्क पर प्रहार कर सोचने समझने की शक्ति को नष्ट कर देती है सोचने की शक्ति, मस्तिष्क पर नियंत्रण हटते ही शराबी व्यक्ति अच्छे-बुरे, पाप-पुण्य का भेद भूल जाता है तथा विवेकहीन होकर प्रथम अपनी बुद्धि फिर चरित्र नष्ट करता है।

महात्मा गांधी आगे कहते हैं शराब शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आर्थिक दृष्टि से मनुष्य को बर्बाद कर देती है। शराब के नशे में मनुष्य दुराचारी बन जाता है वही चेहरा जो शराब पीने से पहले प्यारा, आकर्षक, प्रसन्न, विचारशील लगता था वही चेहरा शराब पीने के बाद घृणास्पद, निकृष्ट, राक्षसों के समान खूंखार, असन्तुलित, अनियंत्रित और वासनात्मक भूखे भेडि़ये के समान लगता है। शराबी का न शरीर पर नियन्त्रण है, न वाणी पर, न दृष्टि पर नियंत्रण है न विचारों पर कोई नियंत्रण है। शराब के साथ व्यक्ति मांस, जुआ तथा वैश्यावृति में फंस जाता है। 

70 प्रतिशत दुर्घटनायें चालक की भूल या लापरवाही के कारण होती हैं चालक की लापरवाही से होने वाली भूलों में एक बड़ी संख्या उनकी है जो किसी न किसी नशे के कारण गाड़ी चला कर दुर्घटना करते हैं।

हत्याओं तथा अपराधों जिसमें चोरी, डकैती, छीना-झपटी, मारपीट, छेड़-छाड़ व बलात्कार आदि के सभी मामलों में 50 प्रतिशत से अधिक मामलों का मूल कारण शराब है, अधिकांश अपराध शराब के नशे में किये जाते हैं। जहरीली शराब के कारण हजारों व्यक्ति प्रतिवर्ष काल के ग्रास बनते हैं।

शराब के रोगियों में 27 प्रतिशत मस्तिष्क रोगों से, 23 प्रतिशत पाचन-तन्त्र के रोगों से, 26 प्रतिशत फेफड़ों के रोगों से ग्रसित रहते हैं।


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