Posted on 31-Oct-2015 04:44 PM
पिछले कुछ दशकों से दमा पीडि़त मरीजो की संख्या मे प्रदूषण के कारण तेजी से वृद्धि हो रही है। अनुमान है कि लगभग दस प्रतिशत व्यक्ति जीवन में कभी न कभी दमा ग्रसित अवश्य हो जाते है। दमा के मरीजों को बार-बार श्वांस फूलने के अटैक होते है साथ ही खांसी और बलगम आने की समस्या हो सकती है। लक्षण स्वतः या उपचार से ठीक हो जाते है, दौरे के बीच में शुरूआत में मरीज पूर्णतया स्वस्थ रहता है।
अस्थमा एलर्जी का ही एक स्वरूप है। इन मरीजो में श्वसन तंत्र की नलिकाएं अत्यधिक संवेदनशील होती है और किसी एलर्जी के कारण तत्व के संपर्क में आने से सिकुड़ कर पतली हो जाती है।
क्यों होता है दमा:- संवेदनशील व्यक्तियों मे अटैक होने के अनेक कारण हो सकते है। दमा करने वाले तत्व बाह्य या आंतरिक स्तर पर शरीर को प्रभावित कर रोग के लक्षण कर सकते है। कुछ मरीजों में अनुभव या टेस्टों द्वारा अटैक करने वालें तत्व का पता लग जाता है पर ज्यादातर में यह मुश्किल होता है। किसी-किसी मरीज में कई तत्वों से एलर्जी होने के कारण अस्थमा रोग के अटैक हो सकते है। कुछ मरीजों मे रोग वंशानुगत हो सकता है। जिन परिवारों में दमा ग्रसित मरीज हैं तो उनकी संतानों को रोग होने का भय ज्यादा होता है। कुछ मरीजों में अटैक का संबंध मौसम से होता है। फेफड़ों के संक्रमण, चिंता, तनाव, गृह-कलह, असंतोष के कारण भी अस्थमा के दौरे पड़ सकते है। दमा के दौरे पड़ने के अनगिनत कारण हो सकते है। वायु के मौजूद प्रदूषित तत्व, धुआं, धूल, वायरस, सुगंध, ठंडक, गर्मी, मानसिक तनाव, खुशी, घुटन, पशुओं के रोयें, बाल, मलमूत्र इत्यादि या अन्य किसी तत्व से एलर्जी होने पर दमा के दौरे हो सकते है।
समस्याएंः- अटैक के दौरान श्वांस फूलने से मरीज या तो चल फि नहीं पाते या जल्दी ही थक जाते है। श्वांस जल्दी-जल्दी चलने और ज्यादा शक्ति लगने से वे निढाल हो जाते है। शरीर मे आॅक्सीजन की कमी के कारण उनमें होंठ व नाखून नीले पड़ सकते है। मेहनत और कठिनाई से श्वांस लेने के कारण नथुने फूल जाते है, गले की मांसपेशियों को भी श्वसन क्रिया में भागीदारी करनी पड़ती है। अटैक के समय हृदय गति तेज हो जाती है, बोलने मे ंपरेशानी होती है, मरीज बेचैन रहते है। बच्चों मेें दमा के लक्षण व्यस्कों से भिन्न होते है, जो कि 4-5 माह में शुरू होकर ज्यादातर बच्चों में 4-5 वर्ष में धीरे-धीरे समाप्त हो जाते है।
रोग से बचाव एवं उपचार:- दमा संक्रमण रोग नहीं है। मरीजों के साथ उठने-बैठने, खाने-पीने, सोने से नहीं फैलता है। दमें के रोगी सामान्य जीवन गुजार सकते है। वे सामान्य कार्य कर सकते है। गहरी नींद सो सकते है, खेल में हिस्सा ले सकते है, मगर वे सावधानी से रहना सीख लें।
कोशिश कर पता करें कि किस तत्व की एलर्जी के कारण दमा के अटैक होते है, फिर उस तत्व से यथासंभव दूर रहे। रोगियों को चिकित्सक के निर्देशानुसार नियमित रूप से दवाओं का सेवन करना चाहिए।
मरीज के रहने, सोने, कार्य स्थल पर धूल कम से कम होनी चाहिए। घर के अंदर न धूम्रपान स्वयं करे, न ही किसी अन्य को इजाजत दे। किचन में धुंआ रहित ईंधन का प्रयोग करें। रसोई में हवा, धूप आने का पर्याप्त प्रबंध होना चाहिए।