Posted on 03-Jul-2015 12:36 PM
थैलेसीमिया एक ऐसा आनुवंशिक रक्त विकार रोग है जिसमें रोगी के शरीर में लाल रक्त कण तथा हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य अवस्था से भी कम हो जाती है। वस्तुतः मानव शरीर में आक्सीजन का परिवहन तथा संचरण करने के लिए हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन की आवश्यकता पड़ती है और यदि यह न बने या सामान्य आवश्यकता से भी कम बने तो इस परिस्थिति में बच्चे को थैलेसीमिया रोग से ग्रसित होने की आशंका अधिक रहती है। जिसका चिकित्सकीय प्रयोगशाला में रक्त परीक्षण के पश्चात ही पता चल सकता है। शिशु में इसकी पहचान तीन माह की अवस्था के बाद ही होती है। बीमार बच्चे के शरीर में में रक्ताल्पता के कारण उसे बार-बार खून चढ़ाने की आवश्यकता पडती है। रक्ताल्पता के कारण उसके शरीर में लौह तत्व अधिक मात्रा में उत्पन्न होने लगता है जो हृदय, यकृत तथा फेफड़ों में प्रविष्ट होकर उन्हें क्षतिग्रस्त और दूष्प्रभावित कर देता है। जो अंततः प्राणधातक साबित होता है।
म्यूटेशन के प्रभाव के आधार पर थैलेसीमिया को दो प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है। पहला मेजर तथा दूसरा माइनर। मेजर थैलेसीमिया में रोगी को बार-बार खून चढ़ाने की आवश्यकता पडती है, जबकि माइनर एक प्रकार से थैलेसीमिया जीन के वाहक का कार्य है। इसलिए विवाह के दौरान रक्त परीक्षण के माध्यम से यह पता चल सकता है कि जीवन साथी में थैलेसीमिया जीन का वाहका है अथवा नहीं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में प्रति वर्ष आठ से दस हजार थैलेसीमिया पीडि़त बच्चों का जन्म होता है। आंकड़ों के अनुसार देश की कुल जनसंख्या का लगभग साढे तीन प्रतिशत भाग थैलेसीमिया ग्रस्त होता है। इंग्लैंड में केवल 350, पाकिस्तान में एक लाख तथा भारत में लगभग 10 लाख बच्चे इस रोग से पीडि़त है। यदि माता-पिता दोनों में माइनर थैलेसीमिया है तो बच्चों को यह बिमारी होने की 25 फिसद आशंका रहती है।
इस रोग केे चेहरे का शुष्क रहना, चिडचिडापन, भूख न लगना, वजन न बढ़ना, सामान्य विकास में विलंब प्रमुख लक्षण है। सुक्षमदर्शी यंत्र (माइक्रोस्कोप) की सहायता से रक्त परिक्षण के समय लाल रक्त कण की संख्या में कमी तथा उसके बदलाव की जांच से इस बिमारी को पकड़ा जा सकता है। कम्पलीट ब्लड काउंट से एनीमिया का पता चलता है। इसी प्रकार हीमोग्लोबीन इलेक्ट्रोफोरेसीस से असामान्य हीमोग्लोबीन की स्थिति की जानकारी होती है। म्यूट्रेशन एनालिसिस टेस्ट के जरिये अल्फा थैलीसीमा के जांच के संबंध में जानकारी की जा सकती है। थैलेसीमिया पीडि़त व्यक्ति के इलाज में बाहरी खून चढ़ाने था बरतने पर 12 से 15 वर्ष की आयु के मध्य बच्चों की मृत्यू हो जाती है। इस रोग में बोनमैरो ट्रांसप्लांट के साथ ही स्टेमलेस के जरिये भी इलाज लाभप्रद होता है। इस रोग के प्रति जनजागरूकता भी