Posted on 29-Feb-2016 04:26 PM
लीची का सदाबहार पेड़ स्ट्रॉबेरी परिवार का है। बसंत के आगमन के साथ इनमें बौर आ जाता है, फूलों के गुच्छे फलों में परिवर्तित हो जाते हैं। मध्य मई में ये फल लाल होने लगते हैं, यह इनके पकने की सूचना भी होती है। गुठली वाला खुरखुरे छिलके वाला फल मीठे गूदेदार होता है, इसमें हल्की खटास भी रहती है। ये सफेद गूदा शर्करा, विटामिन सी व पोटेशियम तत्वों से भरपूर होता है, तासीर में शीतल होता है।
लीची समशीतोष्ण जलवायु में होती है। भारत, चीन बांग्ला देश, पाकिस्तान, मलेशिया, इण्डोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, ताईवान, फिलीपींस व दक्षिण अफ्रीका में खूब पैदा होती है। इसका मूल दक्षिणी चीन में माना जाता है। दस्तावेजों में दो हजार साल पहले इसकी वहां उपस्थिति दर्ज है।
लीची बहुत गुणकारी फल है। इसमें सेचुरेटेड फैट्स होते हैं। फाईबर की मौजूदगी के कारण मोटापा व वजन कम करने में सहायक बताया गया है। ब्रेस्ट कैंसर से लड़ने के गुण भी इसमें बताए जाते हैं। विटामिन सी रोग प्रतिरोधात्मक शक्तियों को बढ़ाता है।
बहुत से फल अपनी डाल से टूटने के बाद पकते हैं और उनका स्वाद बदल जाता है, लेकिन लीची का फल अगर कच्चा तोड़ा गया तो कच्चा ही रह जाएगा. इसका भंडारण भी 3 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास करना होता है और 60 दिनों तक कोल्ड स्टोर्स में रखा जा सकता है। आजकल वैज्ञानिक तौर तरीकों से इसके गूदे से बने अनेक उत्पाद लम्बे समय तक सुरक्षित रखे जाते हैं, जैसे जैम, रस, शरबत, स्क्वैश आदि। बाजार में इसकी आईसक्रीम भी उपलब्ध रहती है। नैनीताल के आसपास के क्षेत्रों में रामनगर की लीची सर्वश्रेष्ट मानी जाती है, जिसमें गूदा खूब होता है और गुठली बहुत छोटी होती है। लीची की गुठली गहरे भूरे रंग की होती है ये किसी प्रयोग में नहीं आती है, हाँ इससे नए पौधे तैयार किये जाते हैं।
सचमुच लीची प्रकृति द्वारा हमको दी गयी एक अनुपम सौगात है।