Posted on 01-May-2015 03:55 PM
आयुर्वेद के मतानुसार शहद आठ प्रकार का होता है - (1) माक्षिक, (2) भ्रामर, (3) क्षौद्र, (4) पौतिक, (5) छात्र, (6) आध्र्य, (7) औद्दालिक और (8) दाल। इसमें छह प्रकार का शहद मधु-मक्खियों द्वारा तैयार होता है, अतः उनके नाम उनको बनाने वाली मधु-मक्खियों के नाम के आधार पर ही पड़े हैं।
पीले रंग की बड़ी मक्खियों द्वारा बनाया गया, तेल जैसे रंग का शहद ’माक्षिक मधु’ कहलाता है। माक्षिक मधु श्रेष्ठ, नेत्र के रोगों को दूर करने वाला, हल्का एवं पीलिया, अर्श, क्षत, श्वास, खाँसी तथा क्षय को मिटाने वाला है।
भौंरों के द्वारा बनाया गया और स्फटिक मणि-सा निर्मल शहद ’भ्रामर मधु’ कहलाता है। भ्रामर मधु रक्तपित्त को मिटाने वाला, मूत्र में शीतलता लाने वाला, भारी, पाक में मधुर, रसवाही, नाडि़यों को रोकने वाला, अधिक चिकना और ठंडा होता है।
छोटी पिंगला (लालिमा लिये हुए पीले रंग की) मक्खियों द्वारा बनाया हुआ शहद ’क्षौद्र
मधु’ कहलाता है। यह शहद पिंगल वर्ण का, माक्षिक मधु के समान ही गुणोंवाला और विशेषकर मधुमेह को नाश करने वाला है।
मच्छर जैसी अत्यंत सूक्ष्म, काली और दंश से अतिशय पीड़ा करने वाली मक्खियों द्वारा निर्मित, घी सदृश रंग का शहद ’पौतिक मधु’ कहलाता है। यह शहद रुक्ष और गर्म होता है, अतः पित्त, जलन, रक्तविकार तथा वायु करने वाला, मधुमेह तथा मूत्रकृच्छू को मिटाने वाला एवं गाँठ तथा क्षत का शोषक है।
पिंगला (पीले रंग की) वरटा नामक मक्खियाँ हिमालय के वनों में शहद के छत्राकार छत्ते बनाती हैं। यह शहद ’छात्र मधु’ कहलाता है। यह शहद पिंगल, चिकना, शीतल, भारी और तृप्तिकारक है एवं कृमि, श्वेत कुष्ट, रक्तपित्त, मधुमेह, भ्रम, तृषा, मोह और विष को दूर करने वाला तथा उत्तम गुणों वाला है।