Posted on 12-May-2015 03:23 PM
उपवास को जवानी कायम रखने की कुन्जी समझिये। उपवास चूर्ण एवं स्थाई स्वास्थ्य का दाता है। विद्वान मनिषीयों ने अपने अनुभवों के आधार पर कहा है कि एक स्त्री अपने काम की अधिकता से चिड़चिडी हो गई थी। हड्डियां कमजोर होने पर चलना भी कठिन हो गया। एक जवान का एक्सीडेन्ट होने से छाती की हड्डियां टूट गई थी। एक स्त्री अग्निमन्दता की शिकार तथा गठिया से पीडि़त थी। इन लोगों ने उपवास किये और अपने रोगों से मुक्ति पाई।
साधारणतया उपवास के बाद भूख लगने पर ही उपवास तोड़ना चाहिये। सिर दर्द, उदर विकार, जुकाम, गले की खराश आदि साधारण रोगों के लिये छोटा उपवास पर्याप्त है। गठिया, लीवर खराबी, केन्सर जैसे पुराने जड़ जमाए रोगों के लिये बड़े उपवास ही करने चाहिये। उपवास काल में जितना हो सके पानी पीना ठीक है। ज्यादा भी नहीं। ठण्डा भी पी सकते है या गरम भी। उपवास काल में नित्य स्नान करना न भूलें। उपवास के तुरन्त बाद दूध पीना चाहिये, लेकिन लम्बे उपवास के बाद नहीं। क्योंकि उपवास काल में पाचन शक्ति कमजोर पड़ जाती है। जो पदार्थ आसानी से पच जाय वही लेवें। पाचन शक्ति को सही करने के लिये ही उपवास आवश्यक है। रोगों को दूर करने के लिये ही प्राकृतिक निदान है। उपवास के बाद आपका भोजन फलाहार होना चाहिये। उसके बाद दूध और गेहूँ इस्तेमाल किये जा सकते हैं।
जिन खाद्य पदार्थो में शराब का सिरका दे, मेदे की तली गली चीजे नहीं खानी चाहिये। उपवास तोड़ने के लिये सन्तरे का रस आदर्श माना गया है। उपवास करने वाले को स्वाद के वश में नहीं रह कर भूख के अनुसार ही भोजन लेना ठीक है।
इसका मतलब यह नहीं कि उपवास से कोई नुकसान होगा। गंगा प्राणियों को तारती है, लेकिन तैरना तो हमें ही होगा। कूदना तो होगा ही। उपवास पूरी विधि जाने समझे बिना लम्बे उपवास का आधार लेना हानि कारक भी हो सकता है। यदि समझ बूझ कर किया जाय तो लाभ ही लाभ है। उपवास भी एक प्रकार से योग ही है।
सब रोगों की एक दवाई, हँसते रहिये मेरे भाई।
विकलांग भी अब दौड़ेगा, अपनी लाठी छोड़ेगा।।