Posted on 13-Jun-2015 02:12 PM
गुण और उपयोगिता की दृष्टि से मक्का अन्य धान्यों की अपेक्षा निम्न कक्षा का गिना जाता है। गुजरात के पूर्वी भाग में मक्के का अधिक उत्पादन होता है।
मक्का गुजरात की पिछड़ी जातियों-वनवासी-गिरिवासियों का प्रमुख आहार है। पंच महाल जिले के भील, नायका और मामाओं का यह प्रिय आहार हे। कहीं-कहीं अन्य गरीब लोग भी मक्का खाते हैं।
गुजरात के पंचमहल जिले में डेढ़-दो लाख एकड़ भूमि में मक्का उगाया जाता हे। मक्के का उत्पादन अत्यन्त सरल है। मक्का पहाड़ी इलाके में होता है, किन्तु पूर्णतः पथरीली जमीन उसके अनुकूल नहीं होती।
मक्के के पौधे तीन-चार हाथ की ऊँचाई तक बढ़ते हैं। वे ज्वार के पौधे के समान ही होते हैं। मक्के के पौधे की गांठों में से नये अंकुर फूटते हैं। प्रत्येक पौधे पर अधिकतम तीन भुट्टे लगते हैं। पौधे की चोटी पर तुर्रा (जीरा) निकलता है। इस तुर्रे को यदि पक्षी खा जाऐं या तोड़ डालें तो भुट्टे में दाने नहीं बनते और भुट्टे बिना दाने वाले खाली ही रह जाते हैं। खाद्य धान्यों में मक्के का दाना सब से बड़ा होता है। मक्के के दाने का रंग पीला होता है। क्वचित् लाल रंग के दानों वाले भुट्टे भी पाये जाते हैं। मक्के की फसल को तैयार होने में तीन-साढ़े तीन माह का समय लगता है। मक्के के दाने जल्दी सड़ जाते हैं।
मक्के के टिक्कड़ बनते हैं। मक्के के टिक्कड़ और उड़द के आटे का भुजिया वनवासी लोग प्रेम से खाते हैं। मक्के से चिउड़ा और नमकीन बनता है। हरे मक्के का चिउड़ा, पकौड़े आ1ैर पकवान बनते हैं। मक्के से ढोकले और बड़े भी बनते हैं। पलाश के पत्तों के बीच में मक्के का गूंदा हुआ आटा रखकर बनाया गया टिकड़ अत्यन्त मधुर, रोचक एवं पोषक होता है। ऐसे टिक्कड़ को गुजरात में ‘पानकी’ कहते हैं।रखकर बनाया गया टिकड़ अत्यन्त मधुर, रोचक एवं पोषक होता है। ऐसे टिक्कड़ को गुजरात में ‘पानकी’ कहते हैं।पंजाब में भी मक्के के टिकड़ बनाये जाते हैं।
मक्के के नरम हरे भुट्टे को सेककर खाने से उसके दाने खूब ही स्वादिष्ट लगते हैं। ये पौष्टिक भी होते हैं। मक्के के सूखे दानों को सेकने पर उसकी खील (फुल्ली) अच्छी फूटती है। मक्के की फुल्ली बहुत स्वादिष्ट लगती है।
मक्का मधुर, कटु, कसैला, अत्यन्त रुक्षता लानेवाला, कफ व पिŸा को हरने वाला, रूचि-उत्पादक, दस्त को रोकनेवाला और शीतल होता है।