Posted on 08-May-2015 02:18 PM
छाछ का महत्त्वपूर्ण गुण है आमज दोषों को दूर करना। हम जिस आहार का सेवन करते हैं उस आहार में से पोषण के लिए उपयोगी जो रस विलग होकर बिना पचे पड़ा रहता है उसे ’आम’ कहते हैं। आम अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करता है। इन आमज दोषों को दूर करने में छाछ बहुत उपयोगी है। आम की चिकनाहट को तोड़ने के लिए खटाई (एसीड) की आवश्यकता पड़ती है। यह खटाई छाछ उपलब्ध करवाती है। छाछ इस चिकनाहट को शनैः शनैः आँतोें से विलग कर, उसे पकाकर बाहर ठेल देती है। इसीलिए पेचिश में इन्द्रजौ के चूर्ण के साथ और अर्श में हर्र के चूर्ण के साथ छाछ का सेवन करने से लाभ होता है।
संग्रहणी के रोगी को केवल छाछ पर ही रखने का निर्देश है। जब दुर्बल बनी आँतें किसी भी आहार का पाचन नहीं कर सकती, जो भी आहार लिया जाए उसे विकृत बनी हुई ग्रहणी पूरा का पूरा बाहर धकेल देती है, ऐसी स्थिति में छाछ आँतों को बल प्रदान करती है, ग्रहणी की ग्रहण-शक्ति बढ़ाती है और आवश्यक पाचक रस उत्पन्न कर ग्रहणी की क्रिया को व्यवस्थित करती है। अतः संग्रहणी के भयंकर रोगियों को केवल छाछ पर रखकर तक्र-प्रयोग (तक्रकल्प) से स्वस्थ किया जा सकता है।
तक्रकल्प - गाय का दूध जमाकर, कम खटाईवाले दही में तीनगुना पानी मिलाकर, मथकर, मक्खन निकालकर, उस छाछ का सुबह-शाम अल्प भोजन के पश्चात् एक गिलास से लेकर अनुकूलता के अनुसार अधिकाधिक मात्रा में निरंतर पाँच-सात दिन तक सेवन करें। प्यास लगने पर पानी के स्थान पर उपर्युक्त छाछ पीएँ। सिर्फ हाथ धोने और कुल्ले करने के लिए ही पानी का उपयोग करें। भोजन में चावल, खिचड़ी, उबाली हुई तरकारी, मूँग की दाल तथा रोट-रोटी का सेवन करें। दूसरे सप्ताह आधा मक्खन निकालकर बनायी हुई छाछ का प्रयोग करें। शरीर की अनुकूलता के अनुसार छाछ की मात्रा बढ़ाते जाइए और अनाज की मात्रा घटाते रहिए। इस प्रकार तक्र- प्रयोग कीजिए।
पाचन-शक्ति की दुर्बलता, जठराग्नि की मंदता और संग्रहणी सदृश रोगों में इस तक्र-कल्प के प्रयोग से नव-जीवन प्राप्त होता है। अग्नि प्रबल होने पर रोग-प्रतिकारक शक्ति बढ़ती है। जिस रोग को लक्ष कर तक्र-कल्प करना हो वह यदि वातजन्य हो तो छाछ में सेंधा नमक और सोठ डालिए, पित्तजन्य हो तो उसमें थोड़ी इलायची व शक्कर डालिए, कफजन्य हो तो उसमें त्रिकटु का चूर्ण मिलाइए। अर्श, अतिसार या ग्रहणी रोग में जीरा, घी में सेंकी हुई हींग और सेंधा नमक मिलाकर तक्र का प्रयोग कीजिए। जब मल ठीक से बँधा हुआ आने लगे, भूख अच्छी तरह खुल जाए, तब तक्र-कल्प की समाप्ति कीजिए और शनैः शनैः छाछ की मात्रा को कम करते जाइए तथा अन्न की मात्रा बढ़ाते जाइए। इस प्रकार प्रयोग को पूर्ण करना चाहिए। प्रयोग के दौरान अधिक जलपान, ठंडे पवन का सेवन, अधिक भोजन, रात्रि-जागरण, प्रवास, सूर्य की धूप, मिर्च-मसाले, लहसुन, उड़द आदि दलहन, पचने में भारी पदार्थ, स्त्री-संग, मानसिक चिंता, परिश्रम, तैली पदार्थ , खट्टे फल, ककड़ी और नारियल अपथ्य हैं। जिन्हें खट्टी डकारें आती हों, अम्लता हो, मुँह में छाले पड़ गये हों, उन्हे यह तक्र-प्रयोग नहीं करना चाहिए। यदि तक्र-प्रयोग से शरीर को तकलीफ महसूस हो तो भी तक्र-प्रयोग बंद कर दीजिए।