Posted on 03-Jun-2015 04:30 PM
आँवला सौ औषधियों की एक औषधि है। आँवला ही एक ऐसा फल है जिसे सुखाने से भी विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में बना रहता है। पौष्टिक और रक्तशोधक रक्त विकार दूर करता है। नेत्र ज्योति बढ़ाता है। आँवले के रोज सेवन से यौवन बना रहता है। बाल काले रहते हैं। सेवन से यौवन बना रहता है। बाल काले रहते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार हरीतकी (हरड़) और आँवला दो सर्वोत्कृष्ट औषधियाँ है। इन दोनों में आँवले का महत्व अधिक है। चरक के मत से शारीरिक अवनति को रोकने वाले अवस्था स्थापक द्रव्यों मे आँवला सबसे प्रधान है। प्राचीन ग्रंथकारों ने इसको शिवा (कल्याणकारी), अवस्था को बनाए रखने वाला तथा धात्री (माता के समान रक्षा करने वाला) कहा है।
इसके फल पूरा पकने से पहले व्यवहार में आते हैं। वे ग्राही (पेटझरी रोकने वाले), मूत्रक तथा रक्तशोधक बताए गए हैं। कहा गया है, ये अतिसार, प्रमेह, दाह, कँवल, अम्लपित्त, रक्तपित्त, अर्श, बद्धकोष्ठ एवं आयु में वृद्धि करते हैं। मेधा स्मरण शक्ति, स्वास्थ्य, यौवन, तेज कांति तथा सर्वबलदायक औषधियों मे इसे सर्वप्रधान कहा गया है। इसके पत्तों के क्वाथ से कुल्ला करने पर मुँह के छाले और घाव नष्ट होते हैं। सूखे फलों के पानी में रात भर भिगोकर उस पानी से आँख धोने से सूजन इत्यादि दूर होती है। सूखे फल खूनी अतिसार, आँव बवासीर रक्तपित्त में तथा लौह भस्म के साथ लेने पर पांडुरोग और अजीर्ण में लाभदायक माने जाते हैं। आँचला के ताजे फल, उनका रस या इनसे तैयार किया शरबत शीतल, मूत्रक, रेचक तथा अम्लपित्त को दूर करने वाला कहा गया है। आयुर्वेद के अनुसार यह फल पित्तशामक है और संधिवात में उपयोगी है। ब्रह्मरसायन तथा च्यवनप्राश, ये दो विशिष्ट रसायन आँवले से तैयार किये जाते हैं। प्रथम मनुष्य को निरोग रखने तथा अवस्थास्थापन मेें उपयोगी माना जाता है तथा दूसरा भिन्न-भिन्न अनुपानों के साथ भिन्न-भिन्न रोगों, जैसे हृदय रोग, वात रक्त, मूत्र तथा स्वरक्षय, खाँसी और श्वासरोग से लाभदायक माना जाता हैै। दूर होती है। सूखे फल खूनी अतिसार, आँव बवासीर रक्तपित्त में तथा लौह भस्म के साथ लेने पर पांडुरोग और अजीर्ण में लाभदायक माने जाते हैं। आँचला के ताजे फल, उनका रस या इनसे तैयार किया शरबत शीतल, मूत्रक, रेचक तथा अम्लपित्त को दूर करने वाला कहा गया है। आयुर्वेद के अनुसार यह फल पित्तशामक है और संधिवात में उपयोगी है। ब्रह्मरसायन तथा च्यवनप्राश, ये दो विशिष्ट रसायन आँवले से तैयार किये जाते हैं। प्रथम मनुष्य को निरोग रखने तथा अवस्थास्थापन मेें उपयोगी माना जाता है तथा दूसरा भिन्न-भिन्न अनुपानों के साथ भिन्न-भिन्न रोगों, जैसे हृदय रोग, वात रक्त, मूत्र तथा स्वरक्षय, खाँसी और श्वासरोग से लाभदायक माना जाता हैै। अवस्थास्थापन मेें उपयोगी माना जाता है तथा दूसरा भिन्न-भिन्न अनुपानों के साथ भिन्न-भिन्न रोगों, जैसे हृदय रोग, वात रक्त, मूत्र तथा स्वरक्षय, खाँसी और श्वासरोग से लाभदायक माना जाता हैै।
आधुनिक अनुसंधानोें के अनुसार आँवला में विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में होता है। इतनी अधिक मात्रा में कि साधारण रीति से मुरब्बा बनाने में सारे विटामिन का नाश नहीं हो पाता। संभवतः आँवले को छाँह में सुखाकर और कूट-पीसकर सैनिकों के आहार में उन स्थानों में दिया जाता है जहाँ हरी तरकारियाँ नहीं मिल पाती। आँवले के उस अचार में, जो आग पर नहीं पकाया जाता विटामिन सी प्रायः पूर्ण रूप से सुरक्षित रह जाता है और यह अचार, विटामिन सी की कमी में खा सकते हैं।
रासायनिक संघटन:-
आँवले 100 ग्राम रस में 921 मि.ग्रा. और गूंदे में 720 मि.ग्रा. विटामीन सी पाया जाता है। आर्द्रता 81.2, प्रोटीन 0.5, वसा 0.1, खनिज द्रव्य 0.7, कार्बोहाइड्रेट्स 14.1, कैल्शियम 0.05, फाॅस्फोरस 0.02 प्रतिशत, लौह 1.2 मि.ग्रा., निकोटिन एसिड 0.2 मिग्रा पाए जाते हैं। इसके अलावा इसमें गैलिक एसिड, टेनिक एसिड, शर्करा (ग्लूकोज), अलब्यूमिन, काष्ठौज आदि तत्व पाये जाते हैं।
लाभ:-
आँवला दाह, खाँसी, श्वास रोग, कब्ज, पाण्डु, रक्तपित्त, अरूचि, त्रिदोष, दमा, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता हैै। चर्बी घटाकर मोटापा दूर करता है। सिर के केशों को काले, लंबे व घने रखता है। दाँत मसूड़ों की खराबी दूर होना, कब्ज, रक्त विकार, चर्मरोग, पाचन शक्ति में खराबी, नेत्र ज्योति बढ़ना, बाल मजबूत होना, सिरदर्द दूर होना, चक्कर, नकसीर, रक्ताल्पता, बल, बेवक्त बुढापे के लक्षण प्रकट होना, यकृत की कमजोरी व खराबी, धातु विकार, हृदय विकार, फेंफड़ों की खराबी, श्वास रोग, क्षय दौर्बल्य, पेट कृमि, उदर विकार, मूत्र विकार आदि अनेक व्याधियों के घटाटेप को दूर करने के लिए आँवला काफी उपयोगी है।