Posted on 23-May-2015 03:05 PM
देवता शिष्ट-मनुष्य गुरु और ज्ञानी जनों का सम्मान, पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा-इसको शरीर का तप कहते है।
दूसरों केा उद्विग्न न करने वाले सत्य प्रिय, हित वाक्य को कहना, आत्मा को ऊंचा उठाने वाले ग्रंथो का स्वाध्याय करना-इसको वाणी का तप कहते है।
मन को प्रसन्न रखना, शांतभाव, कम बोलना, आत्मसंयम और भावों की पवित्रता, इसको मन का तम कहते हैं।
बिखरे हुए कल्याणकारी अमूल्य हीरे-मोती
जैसे पानी को कपडे से छानकर पीते हैं वैसे ही प्रत्येक शब्द को सत्य से छानकर बोलो।
जैसे कीड़ा वस्त्रों को वैसे ही ईष्र्या मनुष्य को नष्ट कर देती है।
बल और आरोग्य संयम में ही छिपे होते हैं।
सच्चाई के प्रति स्नेह ही प्रतिभा की पहली और आखिरी मांग है।
मनुष्य के चार द्वारपाल हैं - क्षमा, संतोष, सत्संग और विचार।
वैर और वासना से जीवन और मृत्यु दोनों बिगड़ते हैं।
गर्म स्वभाव सौहार्द्रता और सिद्धान्तों का प्रथम विघ्न है।
धीरज प्रतिभा का आवश्यक अंग है।
जो कर्म हिंसा से रहित है, वे सदा मनुष्य की रक्षा करते है।