Posted on 24-Jun-2016 11:13 AM
एक युवक बड़ा परिश्रमी था। दिन भर काम करता, शाम को जो मिलताखा-पीकर चैन की नींद सो जाता। कुछ संयोग ऐसा हुआ कि उसकी लाॅटरी लग गई। ढ़ेरो धन उसे अनायास मिल गया। अब उसका सारा समय भोग विलास में बीतने लगा। वासना की तृप्ति हेतु निरत होने से श्रम के अभाव में वह दुर्बल होता चला गया। चिन्ता और दुगनी हो गई। नींद भी चली गई। एक दिन एक महात्मा उधर आए। उसने उनके सुख और खुशी का मार्ग पूछा। महात्मा जी ने एक शब्द में कहा -“संतोष” और आगे बढ़ गए। युवक समझ गया। सारी मुफ्त की सम्पत्ति उसने एक अनाथालय और विद्यालय को दान कर दी। स्वयं एक लोकसेवी का परिश्रम से युक्त जीवन जीने लगा। सबसे बड़ा धन संतोष है।