Posted on 16-Jul-2015 03:11 PM
पसलियों से बनी वक्ष गुहा के अन्दर यह संख्या में दो होती हैं। जो एक बायीं ओर दूसरी दायीं ओर होती है। दोनों फेफड़ों के बीच वायुनली होती है। वायुनली के अतिरिक्त दोनों फेफड़ों के बीच आहार नली, महाधमनी, महाशिरा आदि होती हैं। कन्धे से लेकर वक्षोदर मध्यस्थ माँसपेशी तक वक्ष गुहा का अधकांश स्थान ये दोनों फेफड़े ही लिए होते हैं।
फेफड़ों के निचले भाग में कुछ दूरी पर बायीं ओर हृदय होता है। ये फेफड़े गोदुमी आकार के होते हैं। इनका न तो दर आधार वक्षोदर मध्यस्थ पेशी पर अवस्थित होता हैं ’वक्षोदर-मध्यस्थ’ अर्थात् वक्ष और उदर के बीच मध्य में जो अवस्थित हो। डायाफ्राम एक ऐसी ही माँसपेशी होती है। इसलिए इसका नाम वक्षोदर मध्यस्थ माँसपेशी है।
फेफड़ों का शीर्ष भाग गर्दन के पास होता है। दायाँ फेफड़ा बायें फेफड़े की अपेक्षा कुछ बड़ा, लेकिन लम्बाई में छोटा होता है। प्रत्येक फेफड़ा वायुरूद्ध गह्नर में सुरक्षित होता है। वायुमण्डल का सम्बन्ध इन फेफड़ो से हमारी श्वाँस नलियों द्वारा होता है।
बनावट - फेफड़ों की दरारों द्वारा खण्डों एवं उपखण्डों में विभाजित होते हैं। दाहिने में तीन एवं बायें में दो विशिष्ट खण्ड होते हैं। ये खण्ड भी कई उपखण्ड में विभाजित होते हैं। देखने में प्रत्येक खण्ड और उपखण्ड स्वयं 1-1 अलग-अलग फेफड़े जैसा लगता है। फेफड़े के प्रत्येक खण्ड के लिए स्वतंत्र रूप से वायु और रक्त की नलियों की व्यवस्था होती है।
फेफड़े दोहरी श्लैष्मिक झिल्ली द्वारा पूर्णतः आवेष्टित होते हैं। इस झिल्ली की एक तह फेफड़े की ऊपरी सतह से और दूसरी तह वक्षस्थल की भीतरी दीवार से लगी होती है। इस दूसरी झिल्ली के फेफड़े को बाह्म आवरण कहते हैं। इसमें से एक प्रकार का स्त्राव स्त्रावित होता है जिससे दोनों झिल्लियों के बीच की तह तर रहती और एक-दूसरे के साथ घिसने से बच जाती हैं, साथ ही परतों के तर रहने से फेफड़ों को भी फैलने और सिकुड़ने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती है।