सेवा सौदा नहीं है

Posted on 05-May-2015 02:30 PM




सेवा सौदा नहीं है। सेवा अमृत स्नेह है। हम राम के वंशज हैं। आप और हमारा जन्म उस भारतभूमि में हुआ है जहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अवतार लिया। जिनके चरण कमलों की प्रार्थना करते हुए.....
ऊँ
    भजमन चरण सुख दायी.....
ऐसे भगवान राम के चरणों की कृपा आपको प्राप्त हुई, ऐसे आप श्रीनाथजी की कृपा के वाहक बने, आप और हम धन्य हो गये। अभी प्रारम्भ जब किया, मैं आपसे जब मिला, हमारे भाई-बहिनों ने कहा हर आँख यहाँ यूँ तो बहुत रोती है। आज से अपने लिए रोना बंद कर दीजिए, युग-युग के घावों को धोने की सोचिये। युग-युग के घावों को धोकर मलहम लगाना है। हमें दया के साथ करूणावान बनना है। दया से भी ऊँची करूणा है। करूणा ईश्वर के बहुत नजदीक है। जब जमाने का गम देखेंगे और जमाने के गम को आप दूर करेंगे, आप लोगों के घावों मरहम लगाएँगे, आप विकलांगो, के पैरों को सीधा कराएँगे, आप अनाथों को दौड़ाएँगे, आप इन प्रज्ञाचक्षु बच्चों पर जब हाथ रखेंगे, तो ये मन से प्रसन्न हो जाएँगे। ये भले ही आँखों से आपको देख नहीं पाते हैं लेकिन इनका हृदय बोलेगा। मैं तो आपको एवं स्वयं को सलाह दे रहा हूँ कि हमें सहजमन होना चाहिये। पराये दर्द को अपनाने वाला, लड़खड़ाते इंसान को उठाने वाला, भूखे को भोजन कराने वाला, प्यासे को पानी पिलाने वाला.....
    लेत-देत मनु संतन करहिं
    बल अनुमान सदा हित करहिं


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