Posted on 07-Jun-2016 11:25 AM
महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत् कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। राजस्थान के कुंभलगढ़ में महाराणा प्रताप का जन्म महाराजा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंता के घर ई.स. 1540 में हुआ था। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुंदा में हुआ था। मेवाड़ की शौर्य-भूमि धन्य है जहां वीरता और दृढ प्रण वाले प्रताप का जन्म हुआ। जिन्होंने इतिहास में अपना नाम अजर-अमर कर दिया। उन्होंने धर्म एवं स्वाधीनता के लिए अपना बलिदान दिया। सन् 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में करीब बीस हजार राजपूतों को साथ लेकर महाराणा प्रताप ने मुगल सरदार ाजा मानसिंह के अस्सी हजार की सेना का सामना किया। महाराणा प्रताप के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा था, जिसका नाम ‘चेतक’ था। इस युद्ध में अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को शक्ति सिंह ने बचाया। यह युद्ध केवल एक दिन चला परंतु इसमें सत्रह हजार लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिए अकबर ने भी सभी प्रयास किए। महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने कई वर्षों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। और अंतिम समय तक मेवाड़ की आन की रक्षा की। मेवाड़ की धरती को मुगलों के आतंक से बचाने वाले ऐसे वीर सम्राट, शूरवीर, राष्ट्रगौरव, पराक्रमी, साहसी, राष्ट्रभक्त को शत-शत् नमन।
महाराणा प्रताप का जीवन परिचय
भारत के महान योद्धा महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि है। इसी मौके पर हम बता रहे है महाराणा प्रताप से जुड़े कुछ अनछुए पहलु के बारे में। महाराणा प्रताप के नाम से भारतीय इतिहास गुंजायमान है। यह एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने मुगलों को छटी का दूध याद दिला दिया था। इनकी वीरता की कथा से भारत की भूमि गौरवान्वित है। महाराणा प्रताप मेवाड़ की प्रजा के राजा थे। यह क्षेत्र राजस्थान में आता है। प्रताप राजपूतों में सिसोदिया वंश के वंशज थे। राणा प्रताप एक बहादुर राजपूत थे जिन्होंने हर परिस्थिती में अपनी आखरी सांस तक अपनी प्रजा की रक्षा की। इन्होंने सदैव अपने एवं अपने परिवार से ऊपर प्रजा को मान और सम्मान दिया। महाराणा प्रताप एक ऐसे शासक थे जिनकी वीरता को अकबर भी सलाम करता था। महाराणा प्रताप युद्ध कौशल में तो निपूण थे ही साथ ही वे एक भावुक एवं धर्म परायण भी थे। उनकी सबसे पहली गुरु उनकी माता जयवंता बाई जी थी। महाराणा प्रताप के पिता का नाम राणा उदय सिंह था। इनकी शादी महारानी अजबदे पुनवार से हुई थी। महाराणा प्रताप और अजबदे के पुत्रों का नाम अमर सिंह और भगवान दास था। जिनमे अमर सिंह सबसे बड़े थे। वे अजबदे के पुत्र थे। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 और स्वर्गवास 29 जनवरी 1597 को हुआ था। महाराणा प्रताप के देवलोक गमन के बाद अमर सिंह
हल्दीघाटी का युद्ध
1576 में राजा मान सिंह ने अकबर की तरफ से 5000 सैनिकों का नेतृत्व किया और हल्दीघाटी पर पहले से 3000 सैनिको को तैनात कर युद्ध का बिगुल बजाया। दूसरी तरफ अफगानी राजाओं ने प्रताप का साथ निभाया, इनमे हाकिम खान सुर ने प्रताप का आखरी सांस तक साथ दिया। हल्दीघाटी का यह युद्ध कई दिनों तक चला और अंत में यह युद्ध अकबर जीता नहीं और प्रताप हारे नहीं। युद्ध के बाद कई दिनों तक जंगल में जीवन जीने के बाद मेहनत के साथ प्रताप ने नया नगर बसाया जिसे चावंड नाम दिया गया। अकबर ने बहुत प्रयास किया लेकिन वो प्रताप
महाराणा प्रताप और उनका प्रिय चेतक
इतिहास में जितनी महाराणा प्रताप के बहादुरी की चर्चा की हुई है, उतनी ही प्रशंसा उनके घोड़े चेतक को भी मिली। कहा जाता है कि चेतक कई फीट ऊंचे हाथी के मस्तक तक उछल सकता था। कुछ लोकगीतों के अलावा हिंदी कवि श्यामनारायण पांडेय की वीर रस कविता चेतक की वीरता में उसकी बहादुरी की खूब तारीफ की गई है। हल्दी घाटी (1576) के युद्ध में उनके प्रिय घोड़े चेतक ने अहम् भूमिका निभाई थी। हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है,जहां स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने हाथों से इस अश्व का दाह-संस्कार किया था। कहा जाता है कि चेतक भी राणाप्रताप की तरह ही बहादुर था। चेतक अरबी नस्ल वाला नीले रंग का घोड़ा था। चेतक लंबी-लंबी छलांगे मारने में माहिर था। वफादारी के मामले में चेतक की गिनती दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में की गई है। हल्दीघाटी युद्ध में प्रताप का अनूठा सहयोगी था वह। प्रताप शोध प्रतिष्ठान के मुताबिक दोनों का साथ चार साल तक रहा। जब मुगल सेना महाराणा के पीछे लगी थी,तब घायल चेतक उन्हें अपनी पीठ पर लादकर 26 फीट लंबे नाले को लांघ गया, जिसे मुगल फौज का कोई घुड़सवार पार न कर सका। प्रताप के साथ युद्ध में घायल चेतक को वीरगति मिली थी। राजस्थान में लोग उसे आज भी उसी सम्मान से याद करते हैं, जो सम्मान वे महाराणा को देते हैं। वीरगति के बाद महाराणा ने स्वयं चेतक का अंतिम संस्कार किया था। हल्दीघाटी में उसकी समाधि है। मेवाड़ में लोग चेतक की बाहादुरी के लोकगीत गाते हैं।