सम्पादकीय 23 अक्टूबर

Posted on 23-Oct-2015 03:12 PM




एक बार देवताओं ने विष्णु भगवान से कहा ‘‘हमें स्वर्ग से भी किसी अच्छे लोक में भेज दीजिये... विष्णु ने उन्हें मनुष्य लोक भेज दिया और कहा कि वहांँ ’’सुख और सौंदर्य तभी दृष्टिगोचर होगा, जब तुम लोग करूणा जीवित रखोगे और सेवाधर्म का रसास्वादन करोगे।’’
देवताओं ने आकर सभी को दुःखों में डूबे हुए देखा। उन्होंने पीडि़तों व दुःखियों की सेवा शुरू कर दी। कोई मेघ बनकर बरसने लगा। किसी ने उष्मा और उर्जा बिखेरी। कोई रात्रि में शीतलता भरा प्रकाश बाँटने लगा। किन्हीं ने वनोषधियों का रूप बनाया और अपरिग्रही बनकर लोगों की कष्ट मुक्ति का उपाय बताने में लीन हो गये।
बहुत दिन बाद जब विष्णु ने नारद जी को भेजा तो पता लगा कि ‘‘देवता लोग सेवा के आनन्द को स्वर्ग से बढ़कर मानते है। और उनका वापिस लौटने का मन नहीं है।’’
जी हां, ऐसा ही लगने लगता है- जब आदमी अपने आप को भूलकर स्वयं को परहित में लगा देता है। जब हम संस्थान के शिविरों में किसी गरीब बेसहारा से मिलते हैं, तो सब कुछ भूल जाते हैं। यही कारण है कि किसी बीमार की सेवा में जब हमारा ध्यान लग जाता हैं तो ध्यान हटता नहीं। परसेवा ही मनुष्य जीवन का सच्चा आनंद हैं जिसके लिए देवता तक लालायित रहते हैं।
हमें तो प्रभु की कृपा से वह सब मिला हुआ है- जिसकी देवताओं ने प्रभु से प्रार्थना की थी। आज मनुष्य जीवन, पारिवारिक सुसंस्कार एवं नारायण सेवा संस्थान जैसा सेवा का क्षेत्र सभी कुछ तो मिला है- हमें? आइये, हम सभी यह सद् संकल्प फिर से दोहराएं कि सेवा का कोई भी अवसर हाथ से जाने न देंगे।


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