Posted on 16-Jul-2015 02:56 PM
’युधिष्ठर बेटा, ऐसा करना कि दस ऐसे व्यक्तियों की सूची बना कर लाना, जो -बहुत ही बुरे हैं। मैं प्रयत्न करूंगा कि वे अपने दुर्गुणों को, कषायों को कम कर सके।’ गुरू द्रोणाचार्य की बात सुन युधिष्ठिर ने सिर हिलाया। कुछ दिनों बाद ज्येष्ठ पांडुपुत्र कोरा कागज लेकर आये-निराशा के स्वरों में गुरूजी से बोले -’गुरूदेव क्षमा चाहता हूँ। कुछ लोगों के लिए मैंने सोचा अवश्य था कि वे बुराइयों से भरें होंगे, लेकिन जब उनके नजदीक झाँकने का अवसर मिला तो लगा कि वे तो काफी अच्छे महानुभाव हैं।
गुरू तो ठहरे गुरू ही, कुछ दिनों बाद दुर्योधन से सूची मांगी गई। लेकिन उसमें निर्देश था- दस अच्छे आदमियों का। द्रोणाचार्य जी का पक्का शिष्य था-दुर्योधन-मेहनत उन्होंने भी भरपूर की परन्तु परिणाम था शुन्य। बोले ’’वाह प्रभु वाह। इस जमाने में और अच्छे आदमियों की बात ? हाँ, मुझे यह तो लगा था कि कुछ महानुभाव शायद बुराइयों से ऊपर उठे हुए हैं, लेकिन महाराज, सच बताऊँ, मैंने अच्छी तरह से देख लिया, कि बहुत गये गुजरे लोग हैं वे। हाँ, मेरा नाम आप चाहे तो भले ही ......
आदरणीय बन्धुओं ? पता नहीं महाभारत मूलग्रन्थ में उपरोक्त संवाद है या नहीं। हाँ, वर्षो पूर्व यह प्रसंग सुना जरूर था-संतवाणी में।
हमारी अपनी दृढ़ मान्यता है, कि आज भी, इस घोर कलयुग कहे जाने वाले -इस युग में भी, पंचम काल में भी अच्छे लोग ज्यादा हैं, बुरे व्यक्ति कम।