Posted on 07-Jul-2015 03:24 PM
जीवन कठोर नहीं सरल बनावें
संसार में सफलता पाने का पहला गुर सबके साथ शालीन, विनम्र और मधुर व्यवहार करना है। किसी से अशिष्ट, अशालीन अथवा नुकसानदायक व्यवहार की अपेक्षा और आशंका के बावजूद भी स्वयं पर संयम रखना, अपनी उदारता, शिष्टता तथा शालीनता को विगलित न होने देना ही जीवन की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक है। क्या हमने कभी इस पर सोचा है ? यदि नहीं तो जरूर सोचें।
एक राजा ने एक रात्रि स्वप्न देखा कि कोई उससे कह रहा है कि- ‘कल रात विषैले सर्प के दंश से तुम्हारी मृत्यु होगी। वह सर्प तुम्हारे महल से कुछ दूर बांयी दिशा में लाल फूल वाले पेड़ की जड़ में रहता है। वह तुम्हारे पूर्व जन्म की दुश्मनी का बदला लेने को आतुर है।’ सुबह जब राजा नींद से जागा तो स्वप्न पर विचार करने लगा। वह धर्मात्मा और प्रजापालक था। उसने सोचा कि स्वप्न हमेशा ही मिथ्या नहीं, सत्य भी होते है। अब उसने आत्म रक्षा के उपाय पर विचार आरम्भ किया। वह इस निर्णय पर पहुंचा कि मधुरवाणी और व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला और कोई शस्त्र नहीं हो सकता। इसी के बल पर तो पड़ोसी राजा भी उसके मित्र हैं। उनकी ओर से वह सदैव निश्चिन्त और भय मुक्त हैं। शांम ढलते ही राजा ने उस पेड़ की जड़ से अपने शयन कक्ष तक मार्ग में फूल बिछवा दिये। सुगन्धित द्रव्य छिड़कवाया। पूरे रास्ते मीठे दूध से भरे कटोरे रखवाए। प्रहरियों को सख्त हिदायत दी कि इस रास्ते रात्रि में यदि कोई सर्प मेरे शयन कक्ष तक आए तो उसे कोई हानि न पहुचाई जाए। अर्धरात्रि में सर्प अपनी बांबी से निकला और महल की तरफ बढ़ने लगा जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया अपने स्वागत में की गई व्यवस्थाओं को देखकर आनन्दित होता रहा। राजमहल द्वार में प्रवेश करते ही सशस्त्र द्वारपालों ने भी उसे रास्ता दे दिया। राजा के इस असाधारण सौजन्य, सद्व्यवहार और नम्रता ने उसे मंत्र मुग्ध कर दिया। वह राजा के मृत्यु का कारण बने या क्षमा करें, इसी उहापोह में वह शयन कक्ष में प्रवेश कर गया। जहां राजा पलंग पर बैठा था। सर्प ने कहा - ‘राजन्! आपने मुझे पूर्व जन्म में बहुत हानि पहुंचाई, उसी का बदला लेने आया हूँ। परन्तु आपके सौजन्य और सद्व्यवहार ने मेरे क्रोधासिक्त निर्णय को परास्त कर दिया है। अब मैं आपका शत्रु नहीं मित्र हूँ। उपहार स्वरूप यह बहुमूल्य मणि स्वीकार करें।’ यह कहकर सर्प पुनः अपनी बांबी की और प्रस्थान कर गया। मित्रों ! अपने प्रति सद्व्यवहार से ही जिस प्रकार सर्प का हृदय परिवर्तित हो गया, वैसे ही हम भी बड़े से बड़ा संकट टाल सकते है। जीवन को चट्टान की तरह कठोर नहीं, जल के समान तरल बनाएं ताकि विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने