Posted on 06-Jul-2015 05:47 PM
प्यासा मनुष्य अथाह समुद्र की ओर यह सोचकर दौड़ा कि जी भर अपनी प्यास बुझाऊँगा ! वह किनारे पर पहुंचा और अंजलि भरकर जल मुंह में डाला किन्तु तत्काल ही उगल दिया। प्यासा सोचने लगा कि नदी, समुद्र से छोटी है, किन्तु उसका पानी मीठा है। समुद्र नदी से कई गुना विशाल है पर उसका पानी खारा है। कुछ ही क्षणों बाद समुद्र पार से उसे एक आवाज सुनाई दी -‘नदी जो पाती है, उसका अधिकांश बाटती है, किन्तु समुद्र सब अपने में ही संचित रखता है। दूसरों के काम न आने वाले स्वार्थी का सार ;जीवनद्ध यों ही निरूसार होकर निष्फल चला जाता है।’ बंधुओं ! जिस प्रकार प्रकाश सूर्य का और सुगंध पुष्प का स्वभाव है, उसी प्रकार दूसरों के दुःख दर्द में सहायक बनना सहृदयी मानव का स्वभाव है। सेवा का भाव उसी में प्रस्फुरित होता है, जो मात्र अपनी प्रसन्नता के लिए वस्तुए अवस्था एवं परिस्थितियों की खोज में ही लगा नहीं रहता । निस्वार्थ सेवा करने की ललक ही सचमुच ईश्वर की सच्ची सेवा और पूजा है। सेवा के लिए प्रयास नहीं करना पड़ता, इसके लिए अवसर स्वतः प्राप्त हो जाते है , क्योंकि सेवक की वृत्ति उस निर्मल सरिता के समान है, जो निरन्तर सेव्य की ओर बहती रहती है। सेवक के अंतरंग में ही प्रभु रमण करते है।
नारायण सेवा संस्थान इसी दर्शन का अनुगामी है। हमारा मानना है कि सेवा से सौभाग्य प्राप्त होता है। यदि सेवा को कर्तव्य समझा जाय, तो निःशक्त, निराश्रित निर्धन और जीवन से निराश लोगों के दुःख दर्द काफी हद तक कम किए जा सकते हैं। यह भ्रम है कि धन-धान्य से परिपूर्ण व्यक्ति अर्थात समृद्ध जीवन जीने वालों को ही सुःख शान्ति नसीब होती है। वे धन कमाना तो जानते हैं लेकिन पुण्यार्जन की ओर नहीं बढ़ पाते। सुःख शांति मय जीवन कैसे जिया जाए?उन्हें ज्ञात नहीं। धन सांसारिक जीवन में एक सीमा तक महत्वपूर्ण हो सकता हैए किन्तु धर्म और सेवा का मार्ग उससे भी अधिक महत्वपूर्ण व श्रेष्ठ है क्योंकि धर्म स्थायी रूप से मानव के साथ रहता है, जब कि धन अस्थायी है। यदि भगवान ने किसी को समृद्धता से नवाजा है, तो वे पीडि़त, वंचित और जरूरतमंद की बुनियादी जरूरत को पूरा करने में सहयोग का संकल्प लेलें, भौतिक उन्नति की बजाय आत्मोन्नति के लिए चिंतन शील हो जाएं तो दुःख उनके द्वार पर कभी दस्तक दे ही नहीं सकता। आध्यात्मिक ज्ञान जीवन की प्रत्येक समस्या का सम्पूर्ण निदान है। कोई भी अतिथि हमारे घर से भूखा, प्यासा न जाए और पड़ोसी भूखा न सोये, दवा और इलाज के अभाव में कोई न तड़फे ऐसा प्रयास ही मानव जीवन को सार्थक करेगा। यही शान्ति का मूलमंत्र भी है।