Posted on 12-May-2015 02:41 PM
किसी शहर के बाजार में एक बड़ी दुकान पर मसनद पर बैठे सेठजी हिसाब-किताब देख रहे थे। भीषण गर्मी में दुकान की छत से लटका पंखा तेजी से घूम रहा था। इसी वक्त नंगे पांव, तन पर फटे वस्त्र, व्यक्ति उधर से गुजरा। किसी गांव से शायद वह मजदूरी के लिए शहर आया था। उसकी निगाह दुकान की ओर गई, जिसके एक कोने में पानी का मटका रखा था। उसके पांव वही रूक गए। वह सहमा सा सेठजी के निकट गया। बोला-प्यास लगी है, थोड़ा पानी पिला दीजिए। सेठजी ने उसे देखा और कहा- बैठ! अभी आदमी आता है, पिला देगा। सेठजी का अभिप्रायः संभवतः उसके नौकर या मुनीम से था, जो काम से कहीं गए थे। कुछ समय बाद फिर प्यासा व्यक्ति बोला-सेठ जी ! कंठ सूख रहा है, बहुत प्यास लग रही है। सेठ जी ने फिर वही बात कही - ‘कहा न कि आदमी आ रहा है।’ प्यासा व्यक्ति फिर बैठ गया। प्यास के मारे चलने की शक्ति भी नहीं थी, वह सेठ से हाथ जोड़कर बोला- ‘आप ही थोड़ी देर के लिए आदमी बन जाइये।’ उस व्यक्ति के ये शब्द सुनकर सेठजी के मस्तिष्क को झटका सा लगा। उनकी चेतना जाग उठी। उन्हें अपराध का बोध हुआ। वे चुपचाप उठे और मटके से लोटा भर लाए। वह गरीब ठण्डा पानी पीकर तृप्त और तरोताजा हो उठा। उसने सेठजी का आभार जताया और अपने रास्ते चल दिया।
बंधुओ! हम साधु, संन्यासी, अफसर, व्यवसायी, मैनेजर, सेठ, इंजीनियर, शिक्षक, डाॅक्टर आदि तो हो सकते हैं लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि आदमी हैं कि नहीं। हमें कुछ भी बनने से पहले अपने आदमियत के अहसास को जीवन्त रखना होगा। जो दूसरों के काम आए वही आदमी हो सकता है।
मनुष्यत्व को न गंवाए, न्याय व ईश्वर का डर मन में रहना चाहिए। स्वाभिमान के साथ सद्मार्ग पर चलना सीखें। सभी पर स्नेह की वर्षां करें कर्तव्यों का पालन धैर्य के साथ करें। धर्म ग्रंथों में निर्दिष्ट नियमेां व संदेशों का पालन करें। मनुष्य जीवन अल्पकालीन है। जीवन की सफलता एक दूसरे के सहयोग और मिलजुल कर रहने में है। मन को सदा राग-द्वैष रहित रखें। दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए कभी कोई अवांछित कार्य न करें। मुंह से मधुरवाणी ही निकलनी चाहिए। दूसरेां की मदद करके तत्क्षण भूल जाएं। आम का वृक्ष मौसम आने पर मीठे फल सबको खिलाता है, प्रत्युपकार की आशा नहीं रखता। जीवन वेग से बहती हुई नदी के समान है। जो कुछ हम हैं अथवा जो कुछ देखते हैं वह कालरूपी प्रवाह में बह जाने वाला है।