Posted on 24-Jun-2016 11:13 AM
आप दूसरों से जैसे व्यवहार की अपेक्षा करते हैं वैसा ही आचरण दूसरों के साथ भी कीजिए। दुख और चिंता से बचाने वाला इससे अच्छा कोई दूसरा उपाय नहीं है। जो दूसरों को दुख देगा या अभद्र व्यवहार करेगा उसे सामाजिक दंड, प्रतिकार, घृणा, निंदा का पात्र बनना ही पड़ेगा। अपनी आत्मा भी उसको धिक्कारती रहेगी। इससे बचने का सीधा रास्ता और सरल उपाय यही है कि सब के साथ आत्मीयता पूर्ण व्यवहार करें। सहयोग, सहानुभूति और सहृदयता के सद्गुणों के कारण दूसरों से प्रेम, स्नेह, प्रशंसा एवं सम्मान प्राप्त होता है। इससे प्रसन्नता होती है सुख मिलता है। निराशा मनुष्य की शारीरिक व मानसिक गिरावट का प्रबल कारण होती है। इससे सफलता का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। इसलिए आशावादी बनने का प्रयत्न कीजिए। क्रोध भी शरीर और मन पर विषैला प्रभाव डालने वाली महाव्याधि है। पंद्रह दिन क्रोध से नष्ट होने वाली शक्ति को यदि बचा लिया जाए तो इससे साढ़े सात घंटे अनवरत श्रम किया जा सकता है। क्रोध का अधिकांश कारण अपना झूठा अंहकार होता है। अतः सदैव शिष्ट, उदार, मितभाषी और नम्र बनने का प्रयत्न करना चाहिए। जो स्वयं को सबसे छोटा मानता है उसे इस दुष्ट महारोग से बिना औषधि छुटकारा मिल जाता है। इसी प्रकार लोभ, मोह, ईष्र्या, द्वेष, कलह और कटुता की दुर्भावनाएँ भी मनुष्य को नीचे गिराती हैं। इनको हर घड़ी अपने मस्तिष्क की प्रयोगशाला में निगरानी बनाए रखनी चाहिए। इन्हें असंयत, अमर्यादित छोड़ देंगे तो मानसिक, शारीरिक, विग्रह उत्पन्न होते देर न लगेगी। इनकी भयंकरता से जीवन का संपूर्ण उल्लास और आनंद समाप्त हो जाता है।