Posted on 11-Jun-2016 11:10 AM
महर्षि वेदव्यास जब महाभारत को लिपिबद्ध करा रहे थे तो उस पूर्ण अवधि में गणेश जी ने एक बार भी अपना मौन भंग नहीं किया। महाभारत लिपिबद्ध हो जाने के बाद महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी से उनके इस वाक्संयम का कारण पूछा तो गणेश जी बोले - “महर्षि ! वाणी का संयम ही मन को एकाग्र रखने का एकमात्र साधान है। वाणी का उपयोग सोच-समझकर करना चाहिए। वाणी से निकले निरर्थक शब्द -विग्रह और विद्वेष को जन्म देते हैं। इसलिए मैं इसके संयम को ही सबसे बड़ी साधना मानता हूँ।” महर्षि उनके इस उत्तर से अभिभूत हो उठे।