जो भी कर्म करे, ईमानदारी से करें

Posted on 26-Dec-2015 10:46 AM




जीवन केवल धन कमाने के लिए नहीं, वह धर्म कमाने और पुण्य बढ़ाने के लिए भी है। पुण्य को बढ़ाये बिना जीवन में बरकत संभव नहीं है। धर्म को बढ़ाये धन बढ़ने वाला नहीं है। धन की तृष्णा  है। यह काम वासना से भी भयंकर है। धर्म से ही मन की भूख तो तृप्त किया जा सकता है। धर्म फासलों को कम करने के लिए और दीवारों को छोटी करने के लिए है। दीवारें रखिये लेकिन इतनी ऊँची मत रखिए कि अपना भाई और पड़ोसी ही दिखाई न पड़े। अगर तुम्हारे आँगन की दीवार से तुम्हारा भाई और पड़ोेसी दिखाई देना बंद हो जाये तो फिर इंसानियत की बात करना बेमानी है। हमें पड़ोसी की जरूरत को भी समझना होगा। हम मन्दिर में सिर्फ देवता की मूरत और संतों की सूरत ही न देखें बल्कि पड़ोसी की जरूरत भी देखें। अगर हम पड़ोसी की जरूरतों को भी समझ पाएँ। हम सामने वाले की अपेक्षाओं और भावनाओं को समझें, यही स्वर्ग का रास्ता है।
मृत्यु के पश्चात् स्वर्ग पाना है तो ’आज’ को, वर्तमान को स्वर्ग बनाना होगा, जीते जी स्वर्ग को उपलब्ध होना होगा। जो वर्तमान को स्वर्ग न बना पाया वह मर कर क्या स्वर्ग पायेगा ? जो जीता ही नर्क में है वह मर कर क्या खाक स्वर्ग पायेगा। जीवन तो केवल वर्तमान में है। पीछे का जिक्र नहीं, आगे का फिक्र नहीं - बस यही जीवन शैली है जो स्वर्गीय आनंद देती है। 
- मुनि तरूण सागर जी


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