Posted on 12-Jul-2016 11:27 AM
गुरु में दोष देखने वाले कभी पवित्र हो ही नहीं सकते हैं और उनकी मति-गति सदा दूषित होती रहेगी जिसका दुष्परिणाम यह होगा कि उनके दिल व दिमाग में कभी भी विमल विवेक यानी पवित्र-ज्ञान उत्पन्न अथवा ग्रहण हो ही नहीं सकता है। मगर इस बात पर सदा सावधान रहना है कि यह गुरु की महत्ता वाला उद्धरण आडम्बरी- ढोंगी-पाखण्डी आध-अधूरे गुरुओं के लिये नहीं है, अपितु पूर्ण-सम्पूर्ण ज्ञान वाले सच्चे गुरु-सदगुरु के लिये है । झूठे और आध-अधूरे गुरुओं के प्रति यदि इस नियम को लागू किया जायेगा, तब तो अर्थ की जगह घोर अनर्थ हो जायेगा । इसलिये यहाँ विशेष सावधानी की अनिवार्यतः आवश्यकता है । गुरु वही जो ‘ज्ञान’ (तत्त्वज्ञान- सम्पूर्णज्ञान) दे । ‘ज्ञान’ वही जिसमें भगवान मिले। भगवान वही जिसमें सम्पूर्ण की सम्पूर्णतया ज्ञान सहित मुक्ति-अमरता का साक्षात् बोध रूप मोक्ष मिले।