Posted on 08-Jun-2016 10:21 AM
जब भगवान् हमारे हैं और हमारे भीतर ही हैं तो फिर चिन्ता कैसी ? शोक कैसा ? वे सर्वसमर्थ हैं, उनकी महिमा का पारावार नहीं, तो फिर भय कैसा ? उनकी सत्ता से कोई बाहर नहीं, आंखों से कोई ओझल नहीं, तो फिर पश्चाताप कैसा ? इन बातों को अपने जीवन में उतार लेने वाले मनुष्य के आनन्द की कोई सीमा नहीं रहती।
यदि भगवान् को पसन्द कर लें, तो हममें उनका प्यार पैदा हो जायेगा , उनकी याद आने लगेगी और मन भी लग जायेगा। यदि हम उन्हीं के नाते सब काम करें, तो विस्मृति कभी न होगी। भगवान् प्यारे लगें, उनकी याद बनी रहे, मन लग जाये, इसी का नाम भजन है। यही तो भक्ति है। परहित का भाव हो, सबके साथ सद्भावना हो- यही तो सेवा है। कुछ नहीं चाहना ही तो त्याग है। भगवान् के समर्पण हो जाना ही प्रेम है। इसी का नाम सच्चा भजन है। अपने स्थान पर ठीक बनें रहें, तो सभी धर्मात्मा हैं। काम छोटा-बड़ा कोई नहीं है।