Posted on 07-Jul-2016 11:32 AM
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है, उसकी उत्सुकता और कल्पनाशीलता भी साथ-साथ बढ़ती जाती है। बच्चा किसी भी प्रकार के खतरे की संभावनाओं व उसके कारणों को समझनें लगता है। यही समझ जहां उसे जागरूक और सावधान बना देती है। वहीं कभी-कभी डरपोक भी बना देती है। देखा गया है कि इस ड़र का विकास उन बच्चों मे ज्यादा तेजी से होता है जिन्हें अभिभावक की मदद जरूरत से ज्यादा मिलती है या अभिभावक लगातार संभावित खतरें की चेतावनी देते रहते है। वहीं दूसरी तरफ कुछ बच्चे स्वभाव से ही अधिक संवेदनशील होते है उनके उर को सहयोग व आपसी समझ से दूर किया जा सकता है। अंधेरा, कीडे़-मकोडे़, ऊँंचाई, खून, अकेलापन, अजनबी व्यक्ति आदि से बच्चे प्रायः डरते ही है। कुछ घटनाओं के अनुभव भी किन्हीं विशेष चीजों से डर पैदा कर देते है। जब बच्चा स्कूल जाना शुरू करता है तो उसे अलगाव व अकेलेपन से डर लगता है, वहीं किशोरावस्था के बच्चों में शैक्षणिक सफलता व किसी भी वस्तु को प्राप्त करने की चाहत को लेकर डर बना रहता है। अगर डर अपनी सीमा मंे है, तो वह सामान्य होता है, लेकिन अगर यह बच्चें की रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित कर रहा है, तो चिंता की बात हो सकती है। उस समय डर केवल डर न रहकर एक बीमारी का रूप धारण कर लेता है। अंधेरे का डर बचपन का आम डर होता है। अगर बच्चा अंधेरे से डरता है तो उसके कमरे का दरवाजा खुला रखें या नाइट लैम्प जला कर रखें। दिन के समय उस बच्चें को खेल या अन्य गतिविधियों में ज्यादा रखें ताकि वह डर के विषय में सोच ही न सकें। कुछ बच्चें कुत्ते, काॅकरोच, कीडे़, साधु, पुलिस या किसी अन्य पोशाकधारी आदमी को देखकर भी डरते है। जरूरी नहीं है कि उनका इन चीजों के बारे में कोई बुरा अनुभव रहा हो। इन चीजों से जबरदस्ती सामना करवाकर बच्चों का डर दूर नहीं किया जा सकता। बच्चें धीरे-धीरे इस डर से खुद ही निकल जाते है। मरने का डर बच्चें के लिए एक अनजाना डर होता है। वे समझ नहीं पाते कि उनके प्रिय लोग आंख मूंदकर कहां चले जाते है? इसलिए यह जरूरी है कि बच्चें को मृत्यु के संबंध में जानकारी शुरू से ही दी जानी चाहिए। बच्चों को यह समझ में आ जाए कि मृत्यु भी जीवन का एक अंग ही है। महत्वपूर्ण बात यह है कि अभिभावक बच्चों को उन सभी बातों की जानकारी शुरू से ही देना शुरू करें जिनका सामना बच्चों को भविष्य में करना पडे़गा। आमतौर पर अभिभावक बच्चें के डर को समझ ही नहीं पाते है। कभी-कभी कायर कह कर बच्चें को लज्जित भी कर दिया जाता है। यह स्थिति ठीक नहीं है। बच्चे को अपने डर के बारे में बताने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए साथ ही उसकी बातों को ध्यानपूर्वक सुनकर उसका समाधान निकालना चाहिए। बच्चें को यह आश्वस्त करना चाहिए कि डर से कुछ भी नहीं होता। आपका रवैया सहानुभूति वाला हो, लेकिन जरूरत से ज्यादा भी नहीं। ऐसी स्थिति में बच्चा अपने डर को सही ठहरानें का प्रयास करने लगेगा। डर की सच्चाई को पहचानने की आवश्यकता है क्यांेकि बच्चे का डर भी सच्चा होता है। जो अभिभावक खुद डर एवं चिंता को दिखाते रहते है या बच्चों को जरूरी खतरों व अनुभवों से बचाते रहते है, वे बच्चों को अधिक डरपोक बना देते है। प्रायः यह देखा गया है कि बच्चा नए लोगों से मिलता-जुलता रहता है, वह अधिक आत्मनिर्भर और बोल्ड़ होता है। बच्चे को बात-बात पर समझाते रहना, उसे डांटते रहना, उसे नसीहत देते रहना उसके लिए घातक बन जाता है। अभिभावकों द्वारा हर मामलें में हस्तक्षेप बच्चें को जीवन में संघर्ष करने की क्षमता प्रभावित करता है। बच्चे को डर का सामना स्वयं से करने दें।