Posted on 16-Sep-2015 04:27 PM
सम्मोहन या कहें कि आत्मसम्मोहन व आत्मचिंतन की मदद से शरीर तथा दिमाग दोनांे सही परिणाम देने लगते हैं। हालांकि नकारात्मक विचार तनावपूर्ण परिस्थितियों की देन होते हैं, लेकिन आप अपने अंदर संतुलन पैदा कर आत्म सुझावों द्वारा उनका सामना कर सकते हैं।
इसके लिए कुछ लोग मंत्रों को मन ही मन पढ़ते या फिर बोलकर उच्चारण भी करते हैं, ताकि मन को शांति एवं नई दिशा व सजगता मिल सके। मंत्रों के शब्द मन के अंदर एक जबर्दस्त पवित्र छाप छोड़ते हैं। ये शब्द दिलों-दिमाग पर गूंजते हैं, जिससे पूरा शरीर प्रभावित होता हैं। अब जब संतुलन ही अहम चीज हैं, तो यहां हम कुछ ऐसी बातों का जिक्र करने जा रहे हैं, जिन पर अमल कर शुरू से ही आप अपने शरीर को संतुलित बना सकते हैं। आयुर्वेद ने इस संबंध में एक प्रणाली का उल्लेख किया हुआ है, जिसे हम सेल्फ रेफरल कहते हैं। सेल्फरेफरल का मतलब हैं- अपने अंदर झाकना या आत्मनिरीक्षण करना और फिर आत्मचिंतन करना।
जब आपकों सुख का अनुभव हो, तो समझिए कि आप आत्मचिंतन कर रहे हैं और जब डर, चिंता, नाराजगी - जैसे भाव आने लगंे, तो समझिए कि आप आत्मचिंतन से बाहर आ गए हैं और आप वस्तु चिंतन कर रहे हैं, क्योंकि इन भावनाओं की उत्पत्ति का कारण ही वस्तु-चिंतन हैं और वस्तु चिंतन कुंठा एवं मानसिक स्थिति ठीक न होने के कारण होता हैं। इससे न सिर्फ सफलता की राह में रूकावट आती हैं, बल्कि आपके शरीर को कहीं न कहीं नुकसान भी पहुंचता हैं।
मनुष्य लगभग 10 हजार तरह की गंधों को पहचार सकता हैं और गंध संबंधी कोशिकाएं नाक के अंदर मौजूद झिल्ली पर होती हैं। यही कोशिकाएं गंध संबंधी खबर सीधे मस्तिष्क के अंदर स्थित हाइपोथैलमस के पास भेजती हैं।
हाइपोथैलमस मस्तिष्क का एक बहुत छोटा-सा भाग है, मगर वह शरीर की दर्जनों प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेदार होता हैं।
जैसे-शरीर का तापमान, प्यास, खून में शर्करा का स्तर, विकास, नींद, जागना, भावनाएँ और पाचन। इस तरह गंध की कोई खबर सबसे पहले हाइपोथैलमस को प्रभावित कर, उसकी कार्य विधियों को सही रखती हैं
खास-खास किस्म की गंधों के जरिए तीनों दोषों (वात, कफ, पित्त) को भी संतुलित किया जा सकता हैं। जैसी तुलसी, संतरा-मौसंबी और लोंग की गंध वात को प्रभावित करती हैं, वैस ही चंदन, गुलाब, पुदीना और दालचीनी की मीठी-ठंडी खुशबू से पित्त संतुलित रहता हैं और लौंग, काली मिर्च, मिंट आदि की गंध कफ को संतुलित करती हैं। अन्य जरूरतों के लिए भी कई गंधों के मिश्रण तैयार किए जा सकते हैं।
एक तरह से देखा जाए, तो आपका शरीर हमेशा उस वातावरण को ग्रहण करता रहता हैं, जिसमें आप रहते हैं और यह कार्य आपकी इंद्रियां करती हैं। लिहाजा, शारीरिक संतुलन के लिए शरीर का मन से संतुलन के लिए शरीर का मन से संतुलन बनाए रखना भी जरूररी होता हैं। इसके लिए आत्म-सम्मोहन विधि सबसे ज्यादा उपयोगी साबित होती हैं।
आत्म-सम्मोहन के दौरान ओंकार संगीतमय ध्वनि से आपके शरीर और दिमाग का संतुलन तो ठीक होता ही हैं, इर्द-गिर्द का वातावरण भी संतुलित होता हैं। इसमें कोई शक नहीं कि ध्वनि का मन और शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है।