Posted on 06-Jul-2015 05:45 PM
संत और पुलिस, दोनों ही, समाज-सुधार का काम करते हैं। फर्क केवल इतना है कि संत ’संकेत’ की भाषा में समझाते हैं, और पुलिस ’बेत’ की भाषा में। दरअसल, जो संत के संकेत को नहीं समझते हैं, उन्हें ही पुलिस के बेंत की जरूरत पड़ती है। पुलिस की वर्दी किसी संन्यासी के भगवा वस़्त्रों से कम महत्वपूर्ण नहीं है। वर्दी विश्वास की प्रतीक है। वर्दीधारी अगर भ्रष्टाचार को प्रश्रय देता है, तो वह वर्दी की अस्मिता को खंडित करता है।
बुजुर्गों के लिए जरूरी नसीहतें: अगर आप बुजुर्ग हैं, तो मुनि तरुणसागर की नसीहतें ध्यान में रखिए। जरूरत से ज्यादा मत बोलिए। बिन मांगे बहू-बेटे को सलाह मत दीजिए। साठ साल की उम्र हो जाए, तो अधिकार का सुख छोड़ दीजिए। बेटा-बहू से कहिए:अब तुम्हीं इस घर के मालिक हो, अपने ढंग से जिओ-रहो। हमें तो बस मेहमान ही समझो। बेशक! तिजोरी की चाबी भी बेटे को दे देना। मगर हां! अपने लिए इतना जरूर बचा लेना कि कल को बेटा-बहू के सामने हाथ फैलाना न पड़े।
आध्यात्मिक बाथरूम हैं मंदिर-मस्जिद: मंदिर और मस्जिद की हैसियत बाथरूम संे ज्यादा कुछ नहीं है। दरअसल, मंदिर और मस्जिद एक आध्यात्मिक बाथरूम हैं। जिस तरह घर के बाथरूम में हम तन की गंदगी को धोते हैं, वैसे ही मंदिर और मस्जिद में मन की मलिनताओं को धोना चाहिए। बाथरूम से तुम नहा-धो कर बाहर निकलते हो, तो एकदम तरोताजा हो कर निकलते हो। ऐसी ही ताजगी, विनम्रता और शांति मंदिर-मस्जिद से बाहर निकलने के बाद तुम्हारे चेहरे पर झलकनी चाहिए।