Posted on 25-Jul-2015 02:38 PM
गुरू को ब्रह्मा कहा गया है, गुरू अपने शिष्य को नया जन्म देता है, गुरू ही साक्षात महादेव है, क्योंकि वह अपने शिष्यों के सभी दोषों को माफ करता है, गुरू का महत्व सभी दृष्टि से सार्थक है, आध्यात्मिक शांति, धार्मिक ज्ञान और सांसारिक निर्वाह सभी के लिए गुरू का दिशा निर्देश बहुत महत्वपूर्ण होता है, गुरू केवल एक शिक्षक ही नहीं है, अपितु वह व्यक्ति को जीवन के हर संकट से बाहर निकलने का मार्ग बताने वाला मार्गदर्शक भी है।
गुरू व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश में ले जाने का कार्य करता है, सरल शब्दों में गुरू को ज्ञान का पुंज कहा जा सकता है आज भी इस तथ्य का महत्व कम नहीं है, विद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं में विद्यालयों द्वारा आज भी इस दिन गुरू को सम्मानित किया जाता है, मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह-जगह भंण्डारे होते है और मेलों का आयेाजन किया जाता है।
वास्तव में हम जिस भी व्यक्ति से कुछ भी सीख्ते हैं, वह हमारा गुरू हो जाता है और हमें उसका सम्मान अवयश्य करना चाहिए। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा अथवा व्यास पूर्णिमा है लोग अपने गुरू का सम्मान करते हैं उन्हें माल्यापर्ण करते हैं तथा फल, वस्त्र इत्यादि वस्तुएं गुरू को अर्पित करते हैं, यह गुरू पूजन का दिन होता है जो पौराणिक काल से चला आ रहा है।