वक्त की पाबंदी

Posted on 18-Jul-2016 01:58 PM




महात्मा गाँधी समय के बेहद पाबन्द थे। यह आदत उनके जीवन के आखिरी दिन तक बनी रही। यह घटना है-30 जनवरी, 1948 की, जिस दिन एक हत्यारे की गोली से बापू शहीद हुए थे। यह घटना दिल्ली के बिड़ला हाउस की है। शाम का समय था। वल्लभभाई पटेल शाम को बापू से मिलने आए। चूँकि आज दोनों के बीच कुछ गम्भीर बातें होनी थी, इसलिए उनके साथ रहने वाली आभा गाँधी और मनु को कमरे से बाहर भेज दिया गया। बापू और सरदार पटेल के मध्य बातचीत के दौरान बापू इतने गम्भीर थे कि आभा और मनु में से किसी की हिम्मत अन्दर कमरे में जाने की नहीं हुई, जबकि शाम के पाँच बजने को आ गए थे। और यह समय था बापू की प्रार्थना का। यह जिम्मेदारी आभा गाँधी की थी कि वे प्रार्थना का समय होते ही बापू को बताएँ, लेकिन आभा के सामने धर्म संकट था कि वो बापू तक पहुँचं कैसे? पाँच बजकर एक मिनट, दो मिनट, तीन मिनट। इस तरह करीब-करीब पाँच बजकर आठ मिनट हो गए। अब आभा गाँधी से रहा नहीं गया क्योंकि बापू वैसे तो हर समय की लेकिन खासकर प्रार्थना के समय की विशेष पाबंदी रखते थे। इसलिए आभा गाँधी साहस करके भीतर गई और बिना कुछ बोले ही घड़ी बापू के सामने कर दी। घड़ी देखते ही बापू चैंक पड़े और अचानक उठते हुए बोले-‘‘यह क्या! दस मिनट की देरी हो गई। वल्लभभाई! प्रार्थना में पहले से ही देरी हो गई है। अब मुझे जाना ही चाहिए। अब हम बातचीत यहीं खत्म करते हैं। तुम चाहो तो फिर आ जाना।’’ प्रार्थना में इतनी देरी हो जाना बापू को इतना अखरा कि वे रोज जिस रास्ते से प्रार्थना-स्थल पर जाया करते थे, उस रास्ते से न जाकर, कमरे की बड़ी खिड़की से कूदकर प्रार्थना स्थल की ओर तेज़ी से दौड़ने लगे। उस समय उनकी उम्र 79 वर्ष की थी।


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