Posted on 23-Jun-2015 12:12 PM
आषाढ़ शुक्ला द्वितीय को रथ-यात्रा का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन पुष्य नक्षत्र में सुभद्रा सहित भगवान के रथ की सवारी निकलती है। यों तो भारतवर्ष में सर्वत्र यह उत्सव मनाया जाता है, पर इस दिन जगन्नाथपुरी में विशेष धूमधाम रहती है। इसका जगन्नाथपुरी से विशेष सम्बन्ध है।
जगन्नाथपुरी उड़ीसा प्रान्त में समुद्र के किनारे स्थित है। यह स्थान भारतवर्ष के प्रधान चार धामों में से एक धाम समझा जाता है। यहां शंकराचार्य के प्रधान चार धामों में से एक धाम समझा जाता है। यहां शंकराचार्य द्वारा स्थापित गोवर्द्धन पीठ भी है। यहां के सर्वस्व जगन्नाथजी हैं और उन्हीं के कारण इसका महत्व है।
जगन्नाथजी के मन्दिर के अतिरिक्त यहां अनेक सम्प्रदायों के मठ भी हैं। वैष्णव, शैव और शाक्त सभी यहां रहते हैं। रथ-यात्रा के दिन यहां बहुत भीड़ होती है। बड़ी-बड़ी दूर से लोग जगन्नाथजी का दर्शन करने आते हैं, और अपना जन्म सफल करते हैं। जगन्नाथजी का रथ 45 फुट ऊंचा, 35 फुट लम्बा और उतना ही चैड़ा है। उसमें 7 फुट व्यास के 16 पहिये लगे रहते हैं। बलभद्रजी का रथ 44 फुट ऊंचा है और उसमें 14 पहिये रहते हैं। सुभद्राजी का रथ 43 फुट ऊंचा है और उसमें 12 पहिये हैं। ये रथ प्रतिवर्ष नए बनाये जाते हैं। उनके रथों को खींचे के लिए 4200 मनुष्य रहते हैं। इनके अतिरिक्त भक्त नर-नारी भी रथ खींचते हैं। जनकपुर में भगवान तीन दिन रहते हैं। वहां लक्ष्मीजी से उनकी भेंट होती है। इसके पश्चात् यहां से लौटकर भगवान अपने स्थान पर आसीन होते हैं।