Posted on 15-Jun-2016 11:58 AM
भारतीय जनमानस में गंगा स्नान का विशेष महत्व है। गंगा भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की पवित्रतम नदी है। इस तथ्य को भारतीय तो मानते ही है, विदेशी विद्वान भी इसे स्वीकार करते है। जिस प्रकार संस्कृत भाषा को देववाणी कहा जाता है, उसी प्रकार गंगाजी को देवनदी कहा जाता है।
प्रचलित मान्यता:-ऐसा माना जाता है कि गंगा जी स्वर्गलोक से ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को पृथ्वी पर उतरी थीं (जबकि भगवती गंगा की उत्पत्ति श्रीहरि के चरणकमलों से वैशाख शुक्ल सप्तमी को मानी जाती है )। इसी दिन सूर्यवंशी राजा भगीरथ की पीढियों का परिश्रम और तप सफल हुआ था। उनके घोर तप के फलस्वरूप गंगाजी ने शुष्क तथा उजाड़ प्रदेश को उर्वर तथा शस्य श्यामल बनाया और भय-ताप से दग्ध जगत के संताप को मिटाया। उसी मंगलमय सफलता की पुण्य स्मृति में गंगा पूजन की परंपरा प्रचलित है। गंगा, गीता और गौ को भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व दिया गया है। प्रत्येक आस्तिक भारतीय गंगा को अपनी माता समझता है। गंगा में स्नान का अवसर पाकर कृत-कृत्य हो जाता है। गंगा दशहरा के दिन गंगा के प्रति अपनी सारी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान और पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते है। गंगा दशहरा के दिन यदि संभव हो तो गंगा स्नान अवश्य करना चाहिए अथवा किसी अन्य नदी, जलाशय में या घर के ही शुद्ध जल से गंगाजल मिलाकर स्नान करें, लेकिन गंगा जी का स्मरण और पूजन अवश्य करें। नाम मंत्र के साथ निम्न मंत्र का प्रयोग भी किया जा सकता है-
नमो भगवत्यै दशपापहरायै गंगायै नारायण्यै रेवत्यै।
शिवायै अमृतायै विश्वरूपिण्यै नंदिन्यै ते नमो नमः।।
गंगा पूजन के साथ उनको भूतल पर लाने वाले राजा भागीरथ और उद्गम स्थान हिमालय का भी पूजन नाम मंत्र से करना चाहिए। इस दिन गंगा जी को अपनी जटाओं में समेटने वाले भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए। संभव हो तो इस दिन दस फूलों और तिल आदि का दान भी करना चाहिए। गंगा जी की कृपा से भारत का मानचित्र ही बदल गया है। गंगावतरण के प्रमुख साधक भगीरथ की साधना, तप और अति विकट परिश्रम ने यह अमृत फल प्रदान किया है। उनके इस कठिन प्रयत्न की वजह से ही भगीरथ प्रयत्न एक मुहावरा बन गया है और गंगा जी का एक नाम भागीरथी पड़ गया। गंगावतरण की तिथि गंगा दशहरा के दिन हरिद्वार स्थित हर की पौड़ी में गंगा स्नान, गंगा पूजन और दान का विशेष महत्व है।