Posted on 07-Jul-2016 11:25 AM
अँगुलियों के निशानों को आधुनिक जैवमितीय प्रणाली माना जा सकता है। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में सर फ्रांसिस गाल्टन के द्वारा विकसित की गई यह प्रणाली आज भी उपयोग में लाई जा रही है। हमारी अँगुलियों की त्वचा के आन्तरिक स्तरों में होने वाले घर्षण के कारण उनके ऊपर महीन रेखीय पैटर्न या निशान बन जाते हैं। जब बच्चा गर्भ में होता है, तभी इनका बनना सुनिश्चित हो जाता है और गर्भस्थ शिशु के चार महीने के होने पर ये बिलकुल स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। इनकी विशेषता यह है कि एक बार बन जाने पर ये बदलते नहीं हैं। गर्भ में स्थित यह नन्हा-सा शिशु छः फुट का आदमी बन जाए, तो भी इन पैटर्न या निशानों की बनावट में कोई अन्तर नहीं आता। आयु बढ़ने के बाद त्वचा ढीली हो जाने पर भी
इनकी जमावट वैसी ही बनी रहती है। यदि उँगलियों के भीतरी हिस्से पर चोट लगने से चमड़ी छिल जाए तो भी नए निशान ठीक वैसे ही होते हैं, जैसे वे चोट लगने से पहले थे। उँगलियों की छाप संसार के हर व्यक्ति के लिए अलग होती है। अब तक होता यह था कि अँगुलियों की छाप के विशेषज्ञ इन निशानों की बनावट के आधार पर लोगों की पहचान करते थे। अब कम्प्यूटर की सहायता से इनका विश्लेषण करना सम्भव हो गया है। इसलिए जब आप किसी देश में प्रवेश करते हैं, तब आव्रजन अधिकारी आपको अपनी हथेली एक मशीन पर रखने के लिए कहता है। अँगुलियों के निशानों की तुलना पासपोर्ट पर बने निशानों से करके यह मशीन आपकी पहचान स्थापित करती है।