Posted on 05-Jul-2016 01:58 PM
दीपनं वृष्यमायुष्ये स्नानमूर्जाबल प्रदम।
कण्डूमल श्रमस्वेदतन्द्रातृड् दाह पाष्माजित्।।
नित्यप्रति स्नान करने की महर्षियों ने आज्ञा की है। स्नान करने से मनोवृत्ति प्रसन्न होती है, अग्नि प्रदीप्त होती है, आयु, उत्साह, बल और अग्नि की वृद्धि होती है तथा खुजली, मैल, पसीना, परिश्रम, आलस्य, तथा दाह, त्वचा और रक्त विकार नष्ट होते हंै। वर्ण, तेज, बल-वीर्य की वृद्धि एवं त्वचा की शुद्धि, दुर्गन्ध का नाश, उत्तम, पवि़त्र विचार, प्राप्त होते है।