108 अंक से जुड़ी है हैरानी भरे तथ्य

Posted on 23-Jul-2015 02:52 PM




    हिन्दू धर्म में 108 अंक का अपना एक अलग महत्व है, रुद्राक्ष की माला में 108 मनके होते हैं। मंत्रों का जाप 108 बार किया जाता है, ईश्वर का नाम लेना हो तो उसे भी तभी शुभ और संपूर्ण माना जाता है। वैसे 108 अंक की प्रमुखता, उसकी महत्ता और प्रभाव ना सिर्फ हिन्दू धर्म में देखा जाता है बल्कि अन्य धर्म में भी स्वीकार किया गया है। चलिए जानते हैं इस 108 अंक के पीछे कारण क्या है। हिन्दू धर्म समेत अन्य बहुत से एशियाई धर्मों में 108 के अंक को पवित्र माना गया है। बौद्ध, जैन आदि धर्मोें के अलावा योग में भी इस अंक को महत्वपूर्ण माना गया है। 
    मुख्य शिवांगों की संख्या 108 होती है इसलिए सभी शैव संप्रदाय विशेषकर लिंगायत संप्रदाय में रुद्राक्ष की माला में 108 मनकों का जाप होता है। इसके अलावा वे रोजाना सुबह शिव के अष्टशतनामावली का जाप भी करते हैं। गौड़ीय वैष्णव धर्म में भी वृंदावन में 108 गोपियों का जिक्र किया गया है। 108 मनकों के साथ-साथ गोपियों के नामों का जाप, जिसे नामजाप कहते हैं, पवित्र और शुभ माना जाता है। श्रीवैष्णव धर्म में विष्णु के 108 दिव्य क्षेत्रों को बताया गया है जिन्हें 108 दिव्यदेशम कहा जाता है। हिन्दू धर्म से संबंधित कम्बोडिया के प्रसिद्ध अंग कोरवाट मंदिर की प्रख्यात नक्काशी में भी समुद्र मंथन की घटना को दर्शाया गया है, जब क्षीर सागर पर मंदार पर्वत पर बंधे वासुकि नाग को 54 देव और 54 राक्षस (108) अपनी-अपनी ओर खींच रहे थे। हिन्दू धर्म की तरह तिब्बत के बौद्ध धर्म मंे भी जापमालाओं मेें 108 मनके ही होते हैं, लेकिन कभी कभार गुरु मनकोें को मिलाकर इनकी संख्या 11 भी हो सकती है। जैन धर्म से संबंधित धर्मगुरु और अनुयायी अपनी कलाई पर जापमाला बांधते हैं उनकी संख्या भी 108 ही होती है। 
    लंकावत्र सूत्र में भी एक खंड है जिसमें बोधिसत्व महामती, बुद्ध से 108 सवाल पूछते हैं एक अन्य खंड में बौद्ध 108 निषेधों को भी बताते हैं। बहुत से बौद्ध मंदिरों में सीढि़यां भी 108 रखी गयी हैं। बौद्ध धर्म की कई शाखाओं में यह स्वीकार किया गया है कि व्यक्ति के भीतर 108 प्रकार की भावनाएं जन्म लेती हैं भंते गुणरत्न के अनुसार यह संख्या, सूंघने, सुनने, कहने, खाने, प्रेम, आकाश, दर्द, खुशी आदि को मिलाकर बनाई गई है जापानी संस्कृति में बौद्ध धर्म के अनुयायी बीतते साल को अलविदा कहते और नव वर्ष के आगमन के लिए मंदिर की घंटियों को 108 बार बजाते हैं। प्रत्येक घंटी 108 में से एक सांसारिक प्रलोभन का प्रतिनिधित्व करती है, जिसे त्याग कर व्यक्ति को निर्वाण के मार्ग पर चलना चाहिए। यहूदी लोग जब भी कभी दान करते हैं या फिर चंदा देते हैं 18 से गुणा करके की देते हैं, जिसका संबंध हिब्रु भाषा में चाइ अर्थात, जीवित से है। 108 अंक भी 18 गुणा होता है और अंक में 1 से 8 दोनों ही संख्याएं हैं। 


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