प्राचीन काल से भोजन में तथा घरेलू उपचार के रूप में हल्दी का उपयोग होता रहा है। हल्दी का सबसे ज्यादा उपयोग दाल-साग में होता है। इसके उपयोग से दाल-साग का रंग पीला होता है और स्वाद भी बढ़ता है। बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, मद्रास, देहरादून आदि स्थानों में हल्दी की बोआई की जाती है। गुज
सरसों का तेल हृदय रोगों से बचाता है और इसके कुछ गुण जैतून तेल की तरह होते हैं। सरसों के तेल में असंतृप्त (अनसैचूरेटेड) वसा अम्लों की मात्रा अधिक होती है तथा संतृप्त (सैचूरेटेड) वसा अम्लों की मात्रा बहुत कम लगभग सात प्रतिशत होती है। भोजन मेें संतृप्त वसा अम्लों के सेवन से रक्त धमनियां संकरी हो जात
प्रकृति के आधार स्तम्भ पेड़ मनुष्य के जीवन को जीवन प्रदान करते हैं, तथा बीमारियों की अवस्था में आरोग्य का मंत्र भी बनते हैं। इसी संदर्भ में हम एक-एक वृक्ष के चिकित्सकीय गुणों का अध्ययन करेंगे। नीम: नीम का वृक्ष चिकित्सकीय गुणों की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इसक
सब्जियों, फलों और बचे हुए खाने को तुरंत फ्रिज में रख दें।फ्रिज का तापमान बहुत महत्वपूर्ण है। यह पांच डिग्री सेल्सियस से कम और फ्रीजर का तापमान - 15 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।यह जांचने के लिए कि भोजन सही है या नहीं, उसे चखना नहीं चाहिए, क्योंकि कई बार यह बेहद नुकसा
गर्मियां हमारे शरीर को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। इस मौसम में बाहरी तापमान बढ़ने से हमारे शरीर का ताप भी बढ़ जाता है, इसलिए हमें ऐसे भोजन का सेवन करना चाहिए, जो शरीर को ठंडा रखे। गर्मियों में हमारा पाचन-तंत्र भी कमजोर पड़ जाता है, इसलिए जरूरी है कि ताजा और हल्का भोजन किया जाए। बढ़ता तापमान संक्र
फैमिली हिस्ट्री, दूसरों के धूम्रपान का धुआं, परफ्यूम और काॅइल की गंध, धूलकणों से एलर्जी व वायरल इंफेक्शन के कारण बच्चों में अस्थमा हो सकता है। इस रोग में बच्चे के साथ-साथ माता-पिता को भी कई सावधानी रखनी पड़ती है। आइए जानते हैं उनके बारे में। लक्षण: शुरुआत में नाक बहना और फिर हल्की खांसी आन
गर्मी और मौसम में शरीर में पानी की कमी (डीहाइड्रेशन) हो जाती है, इसलिए पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं। शरीर में पानी की कमी होने से लू लगने की आशंका बढ़ जाती है। गर्मियों में घर से बाहर धूप में अधिक समय न बिताएं। इससे शरीर का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है, जिससे थकान, रक्तचाप कम होना, कमजोरी म
गरमी के मौसम में पेट से संबंधित रोगों के मामले कुछ ज्यादा ही बढ़ जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार इस मौसम में शरीर में पित्त दोष की अधिकता होती है। पित्त का संबंध हमारे पाचन तंत्र से होता है। इसलिए पित्त की अधिकता से कई प्रकार के पेट के रोग जैसे- पेट दर्द, अम्लपित्त (एसीडिटी), आंतों में सूजन, अतिसार
बैचेन करती हुई गर्मी में डिहाइड्रेशन होना मामूली सी बात होती है। इसमें उल्टी-दस्त, बुखार, चक्कर का प्रकोप होता है और इसमें प्राथमिक रोकथाम नहीं की जाय तो व्यक्ति की मौत भी हो सकती हैै। डिहाइड्रेशन से ज्यादातर बच्चे पीडि़त होते है। इसमें प्राथमिक उपचार से प्राकृतिक उपचार से प्रा
उपवास को जवानी कायम रखने की कुन्जी समझिये। उपवास चूर्ण एवं स्थाई स्वास्थ्य का दाता है। विद्वान मनिषीयों ने अपने अनुभवों के आधार पर कहा है कि एक स्त्री अपने काम की अधिकता से चिड़चिडी हो गई थी। हड्डियां कमजोर होने पर चलना भी कठिन हो गया। एक जवान का एक्सीडेन्ट होने से छाती की हड्डियां टूट गई थी। एक