वही सच्चा भक्त है, जो भगवान की खुशी को अपनी खुशी मानता है। वह हमेशा भगवान को खुशी देना चाहता है, उनके लिए किसी असुविधा का कारण बनना नहीं चाहता। यह मानकर चलना चाहिए कि भगवान की खुशी में ही आपकी खुशी है और आपकी खुशी में भगवान की। एकता की इस भावना को आत्मसात कीजिए।
एक मार्ग दमन है तो दूसरा उदारीकरण का, दोनों ही मोर्गों में अधोगामी वृतियां निषेध है। भागवत को सुनने से पाप कट जायेंगे, जैसे कि गोकर्ण ने कथा कही, किन्तु उसके दुराचारी भाई धुंधकारी ने मनोयोग से उसे सुना और उसको मोक्ष प्राप्त हो गया। कई लोगों ने प्रश्न किया कि जब प्रेतयोनि वाले धुंधकारी को मोक्ष मि
गीता-ज्ञान जानने का परिणाम है-’वासुदेवः सर्वम्’ का अनुभव हो जाना। इसके अनुभव में ही गीता की पूर्णता है। यही वास्तविक शरणागति है। तात्पर्य है कि जब भक्त शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिसहित अपने-आपको भगवान् के समर्पित कर देता है, तब शरणागत (मैं-पर) नहीं रहता, प्रत्युत केवल शरण्य (भगवान्) ही र
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् । लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्, वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।।
सत्यवती ने यमुना में विकसित हुए एक छोटे- से- द्वीप पर वेद व्यास को जन्म दिया। श्याम वर्ण होने के कारण उनका नाम कृष्ण रखा गया तथा द्वीप पर जन्म लेने के कारण उन्हें कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा। जन्म लेते ही व्यासजी बड़े हो गए और सत्यवती से बोले - ”माता! मैं अपने जन्म के उद्देश्य को सार्थक करन
भगवान बुद्ध के एक शिष्य विनायक को जरूरत से ज्यादा बोलने की आदत थी। इसी आदत की वजह से वह खूब जोर-जोर से बोलकर भीड़ एकत्र करते और फिर धर्माेपदेश देते। श्रद्धालुओं ने तथागत से शिकायत की। एक दिन तथागत ने विनायक को बुलाया और बातों-बातों में बड़े प्रेम से पूछा, “भिक्षु, अगर कोई ग्वाला सड़क पर निक
ऊँ सहस्त्र शीर्षाः पुरूषः सहस्त्राक्षः सहस्त्र पाक्ष । स भूमि ग्वं सब्येत स्तपुत्वा अयतिष्ठ दर्शां गुलम् ।। सूर्य पूजा के दौरान भगवान सूर्यदेव का आवाहन इस मंत्र के द्वारा करना चाहिए-
लंका पर चढ़ाई करने की पूरी तैयारी हो गई। पुल बनाने का काम जोर-शोर से आरंभ हो गया। धीरे-धीरे पत्थरों की कमी होने लगी। हनुमान राम से बोले, “नाथ! आपकी आज्ञा हो तो मैं जाकर हिमालय पहाड़ का एक पर्वत खंड ही उठा लाऊं।” राम बोले, “हनुमान, मैं इस विषय में सोच ही
भगवान राम और हनुमान जी के पावन व पवित्र रिश्ते को कौन नहीं जानता. राम जी की ओर अपनी भक्ति भावना के लिए हनुमान जी ने अपना सारा जीवन त्याग दिया था और कभी भी विवाह ना करने का निश्चय किया था लेकिन आज हमारे सामने एक ऐसा तथ्य आया है जिसे सुन आप चैंक जाएंगे. हनुमान जी को हमेशा से ‘बाल ब्रह्मचारी&r
कष्ट न हो औरों को ऐसे जीएं जीवन रस बांटे सबको, खुद दुख पीएं। निर्मल करो ज्ञान को अपने त्यागो मोह, भय और अज्ञान राग द्वेष को नष्ट करो मिले मोक्ष सुख की खान भगवान महावीर का दार्शनिक दृष्टिकोण इसी आधार पर निर्मित हुआ था जो उनके यु