शमशान घाट से आये हुए इंसान की कुछ कीटाणुओं के संपर्क में आने की संभावना रहती है। गंगाजल को पवित्र माना जाता है। गंगाजल अथवा हल्दी मिला पानी छिड़कने से कीटाणु साफ हो जाते हैं। कई प्रांतों में शमशान घाट सेे लौटने पर नहाने की प्रथा भी है। यदि कोई ऐसे घर गया हो, जहाँ मौत हुई हो तो उस पर भी पानी छिड़क
पीडि़त करता पोलियो, बचपन से लग जाय। दीन दुःखी के वास्ते, कुछ तो हम कर जाय।। उस जमाने में एक रूपये के सोलह आने चलते थे। एक रूपये की एक सौ बावन पाई होती थी। चवन्नी अलग एक आना, दो आना, आठ आना, और फिर एक रूपया। मेरे ताउजी का नाम श्री देवीलाल जी अग्रवाल था। हमारी कपड़े की दूकान थी। लोग ग
माना कि हमारे पास बाँटने के लिए अपार धन नहीं परंतु एक अपाहिज़ की सेवा के लिए हाथ तो हैं। परवाह नहीं यदि हमारे पास भूखों को देने के लिए अन्न-भंडार नहीं पर दो मीठे बोल तो हम दुःखीजनों को दे ही सकते हैं। परवाह नहीं जो हम सर्वथा साधनहीन हों, परंतु कराहती मानवता के दग्ध हृदय को अपने आंसू से, अपनी करुण
आत्मा की तुलना एक त्रिशूल से की जा सकती है, जिसमें तीन भाग होते हैं- मन, बुद्धि और संस्कार। मन एवं संस्कार दायें और बायें शूल हैं, जबकि बुद्धि मध्य में स्थित है, जो कि कुछ लम्बा और अन्य दो शूलों अर्थात् मन एवं संस्कार से अधिक महत्वपूर्ण होता है। मन आत्मा की चिंतन शक्ति है जो कि विभिन्न
अगर आप सास हैं, और अपने परिवार में सुख-शांति चाहती हैं, तो मेरी चार बातें ध्यान में रखिए। पहली बात, बहू और बेटी में फर्क मत डालिए। बहू को ही बेटी मानिए। दूसरी बात, कभी बहू से झगड़ा हो जाए, तो बहू के पीहर वालों को भला-बुरा मत कहिए। इसे बहू बर्दाश्त नहीं करेगी। तीसरी बात, मंदिर में बैठकर बहू की बुर
प्रकृति ने इस धरती पर जो कुछ भी रचा है, उसमें से कुछ भी व्यर्थ नहीं है। सबकी अपनी-अपनी उपयोगिता है। जी हाँ, हम भी। भले ही हम सभी पेड़ों को एक जैसा मान लें, लेकिन वे एक जैसे होते नहीं हैं। यहाँ तक एक ही श्रेणी की वस्तुएँ एक जैसी नहीं होती। क्या आप विश्वास करेंगे कि खरबूजे तक के बारह सौ प्रकार होते
जब प्राथमिक ज़रूरतें पूरी हो जाती हैं तब इंसान को प्रेम की ज़रूरत महसूस होती है। आप जानते हैं कि कई बार अमीर घर के बच्चे चरस, गांजा, शराब इत्यादि ग़लत चीज़ों में उलझ जाते हैं क्योंकि उन्हें सारी सहूलियतें मिलती हैं। पैसे सेे मिलने वाली सारी चीज़ें उन्हें मिलती हैं मगर प्यार नहीं मिलता। जिन बच्चों
घर-परिवार के लिए धन की जरूरत तो होती ही है और इसके लिए पुरुषार्थ भी करना पड़ता है। लेकिन धन के प्रति लालसा इस कदर भी न बढ़े कि व्यक्ति अपने जीवन का अर्थ ही भूल जाये। व्यक्ति यह जानते-बूझते भी कि दुनिया में सभी खाली हाथ जन्म लेते हैं और खाली हाथ ही उन्हें मृत्यु को वरण करना होता है। धन के मोहपाश म
पोलियो एक ऐसा राक्षस हैं जो जन्म से पहले ही मानव जाति को अपंग बना देता है। आज कई बच्चे हंै जो इस पोलियो की वजह से न चल पाते हैं, न उठ पाते हैं। बड़ा ही कष्टप्रद जीवन जीने को मजबूर है। पोलियो जिन-जिन बच्चों को होता है, वह शारीरिक रूप से अविकसित होते हैं। इनके शरीर के अंगों का विकास पूर्ण रूप से नह
हंसना व्यक्ति के जीवन में परमावश्यक अंग है। अगर इन्सान के जीवन में हंसी को हटा दिया जाए तो पृथ्वी पर हर तरफ नर्क के समान एक उदासीन वातावरण दिखाई देने लगेगा। हंसना प्राकृतिक योगक्रिया जानिये। हंसते समय हमारे देह देवालय का प्रत्येक अंग क्रियाशील हो जाता है। देह की अकड़न झकड़न आदि समाप्त हो ज