भगवान को अपना न मानने से तो हम भक्ति से दूर हो गए और संसार को अपना मानने से हम बन्धन में पड़ गए। अब जब बन्धन में पड़ गए, भक्ति से दूर हो गए तो जीवन में अनेक प्रकार के दोषों की उत्पत्ति हो गई, अनेक प्रकार के अभावों की उत्पत्ति हो गई। उस अभाव को, उन दोषों को मिटाने के लिए यह बात सामने
ंऊँ.... आत्र्त स्वरों को दे सकें, राहत के दो बोल। मिल जाएगा है प्रभू, श्वासों का सब मोल।। नारायण ! नारायण ! नारायण ! यह पंक्तियाँ जब प्रथम बार मैंने सुनी तो मेरी आँखों में बहुत आँसू आए। बार-बार लगा कि हम बहुत बार
सेवा पारस तत्व हैं, लौह स्वर्ण हो जाय। सभी पदारथ जगत के, सेवा से मिल जाय।। टूटा फूटा झोंपड़ा। मिट्टी और गारे की दीवारें। कांटों और घास से ढ़की हुई छत। घर का स्वामी दुबला पतला कि उसकी पसलियाँ भी दिखाई पड़ रही थी। लगभग दस वर्ष से वह इसी गरीबी की चक्की में पिसा जा रहा था। घर के स
क्या आपने कभी सोचा है कि हम सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए क्यों हैं ? आमतौर पर तो यही कहा जाता है कि हम एक दूसरे से इसलिए जुड़े हुए हैं, क्योंकि हम एक-दूसरे की ज़रूरत होते हैं। हम एक-दूसरे से इसलिए जुड़े हुए हैं, क्योंकि हम एक-दूसरे को चाहते हैं, लेकिन यदि इसी बात को थोड़ा-सा फैलाकर थोड़े से विस्तार
नये जीवन में नये काम, गुलदस्ते में लगे फूल जितने आवश्यक हैं। कुछ लोगों से नया काम जल्दी शुरू ही नहीं होता। उनके सामने जब भी कोई नया, अनोखा कार्य या पुराना कार्य करने के लिए होता है तो वे अक्सर वही काम चुनते हैं, जो वे जानते हैं या जो पुराना है। ’नया काम शायद कठिन हो’, यह सोचकर वे नये
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शाम या रात से संबंधित अधिकांश मान्यताएँ उन दिनों बनी थी, जब बिजली का आविष्कार नहीं हुआ था। प्रकाश के लिए दीपक जलाए जाते थे, जिनका प्रकाश बहुत ही मंद होता था। रात में झाडू लगानेे से यह नहीं दिखता था कि धूल के कण कहाँ उड़ रहे हैं और कहाँ कचरा छूट गया है। यही बात कचरे को
धरती पर एक भी ऐसा इंसान आपको नहीं मिलेगा, जिसके पास कोई न कोई समस्या न हों, बशर्ते कि उस इंसान ने समाधि की स्थिति को पा न लिया। समस्याएँ होती हैं। बल्कि हम यह कहना पसंद करेंगें कि - “समस्या है, यह इस बात का प्रमाण है कि जीवन भी है।” हमें इस सच्चाई को बहुत खुले मन से, पूरी उदारता के सा
मत किसी को दर्द का सैलाब दो, मत किसी को छलावों का उपहार दो, देना ही चाहते अगर तुम दोस्त मेरे, आदमी को आदमी का प्यार दो, ये जीवन तो जैसा चश्मे का रंग हो, वैसा लगेगा। किसी को उलझन लगती है तो किसी को जीवन बहुत मधुर लगता है। अभी कल ही मैं पढ़ रहा थ
केवल एक ही बात याद रखो कि तुम कितने सौभाग्यशाली हो। जब तुम यह भूल जाते हो, तब तुम दुःखी हो जाते हो। दुःख तुम्हारे नकारात्मक मनोभावों को और अपने गुणों के प्रति तुम्हारे अत्यधिक लगाव को इंगित करता है। जब तुम अपने को योग्य नहीं समझते, तुम स्वयं को दोषी ठहराते हो और दुःखी होते हो। जब तुम अपने को बहुत
मूर्ति पूजा प्राचीन काल से ही हमारे आर्यावृत में धर्म मार्ग का आलम्बन रहा है। चित्त को एकाग्र कर, अपने मन को परमात्मा में लगाने का पावन माध्यम मन्दिर और उनमें प्रतिष्ठित प्रभू की प्रतिमाएं होती है। आपने देखा और सुना भी होगा कि जहां कहीं भी मन्दिर निर्माण होकर उसमें परमात