काशी में एक कर्मकांडी पंडित का आश्रम था, जिसके सामने एक जूते गांठने वाला बैठता था। वह जूतों की मरम्मत करते समय कोई न कोई भजन जरूर गाता रहता था। पंडित जी का ध्यान कभी उसके भजन की तरफ नही ंगया। एक बार पंडित जी बीमार पड़ गए और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। उस समय उन्हें वे भजन सुनाई पडे़। उनका मन रोग स
कुछ कार्य ऐसे होते है जो एक ही बार होते है। इसीलिए उनका महत्व बहुत अधिक होता है। राजा लोग एक ही बार आज्ञा देते है और उनके मुख से निकलता है वह आदेश होता है, पंडित लोग एक ही बार बोलते है अर्थात् यदि किसी कार्य की पूर्ति का वचन देते है तो उसका निर्वाह करते है। इसी प्रकार माता-पिता भी अपनी
सम्यक दृष्टि - सम्यक दृष्टि का अर्थ है कि जीवन में हमेशा सुख - दुःख आता रहता है हमें अपने नजरिये को सही रखना चाहिए, अगर दुःख है तो उसे दूर भी किया जा सकता है। सम्यक संकल्प - इसका अर्थ है कि जीवन में जो काम करने योग्य है, जिससे दूसरों का भला होता है हमें उसे करने का संकल्प लेना चाहिए और ऐसे
1. घर में जूते चप्पल इधर-उधर बिखेरकर या उल्टे करके नहीं रखने चाहिए, इससे घर में अशांति उत्पन्न होती है। 2. पूजा सुबह भूमि पर आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठकर करनी चाहिए। पूजा का आसन जूट अथवा कुश का हो तो उत्तम है। 3. पहली रोटी गाय के लिए निकालें। इससे देवता भी खु
1. चाणक्य मानते थे कि किसी भी व्यक्ति को अगर आर्थिक हानि होती है तो उसे भूलकर भी इस बात को किसी से साझा नहीं करना चाहिये। ऐसी बातें गुप्त ही रखनी चाहिये क्योंकि कोइ भी आपकी आर्थिक हानि का जानकर मदद करने को तैयार नहीं होगा। दूसरा उसे मदद ना करनी पड. जाए इस डर से दूर हो जाएगा। अतः सावधान, अपनी आर्थ
आचार्य रामानुजाचार्य एक महान संत थे। दूर दूर से लोग उनके दर्शन एवं मार्गदर्शन के लिए आते थे। सहज तथा सरल रीति से वे उपदेश देते थे। एक दिन एक युवक उनके पास आया और पैर में वंदना करके बोला: ”मुझे आपका शिष्य होना है। आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिए।“ रामानुजाचार्य ने कहा
मुनि प्रणम्य सागर ने सुनने की आदत डालने की सीख दी है। उन्होंने कहा कि जितना सुनेंगे, उतने नए विचार दिमाग में आएंगे। पशु-पक्षी और अन्य जीवों को देखकर सोचना चाहिए कि कभी हम भी ऐसे ही थे। मुनि श्री, सेक्टर 4 के पाश्र्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में लाइफ मैनेजमेंट विषय पर प्रवचन दिया। उन्होंने
भलाई स्वतःसिद्ध है, बुराई पकड़ी हुई है। साधक के भाव का दूसरे पर असर पड़ता है। जितना सदाचारी, सद्गुणी साधक होगा, उतना ही उसका संकल्प सत्य होगा। असर उस पर पड़ेगा, जो अपने को शरीर मानता है। कारण कि दोष शरीर में आते हैं। आप शरीर से असंग हो जाओ तो दूसरे की बुरी भावना आप पर असर नहीं करेगी।
छींक का आना अमूमन अशुभ माना जाता है। यदि कोई शुभ कार्य में जाते समय छींक दे तो अपशकुन होता है। ऐसा कई लोगों का मानना है। यदि एक से अधिक छींक आती है तो इसे अपशकुन से नहीं जोड़ा जाता है। रोगी मनुष्य यदि बार-बार छींकता है तो इसे भी अपशकुन नहीं माना जाता है।शुभ कार्य के ल
भगवान बुद्ध प्रवृज्या पर निकले हुए थे। एक स्थान पर वे विश्राम करने के लिए रुके तो अपने साथ आ रहे भिक्षुओं को देखकर चिंता में पड़ गए। उनका अंतिम पड़ाव एक राजप्रासाद में था, जहाँ राजा ने सभी भिक्षुओं को बहुत से वस्त्र उपहार में दिए थे, जिन्हें सारे भिक्षु सिर पर गठरी के समान उठाए चल रहे थे। भिक्षुओ