कवि जयशंकर प्रसाद हिन्दी के श्रेष्ठ कवियों में गिने जाते हैं। छायावादी कवियों में प्रसाद का नाम बहुत ही ऊँचा है। उनके काव्य में छायावादी युग की सभी प्रवृत्तियों का बड़ा सफल अंकन हुआ है। उन्होंने अपने काव्य को सौन्दर्य एवम् प्रेम से विभूषित कर आकर्षक बना दिया है। जीवन परि
परहित कारण मांगते, मोहि न आवत लाज।। आटे के लिए डिब्बे घर घर में रखवा दिये गये थे और आटा एकत्रित करने की जिम्मेदारी मैनंे स्वयं अपने पास रखी। उन डिब्बो पर लिखा गया “दरिद्र नारायण सेवा” तो मेरी पत्नि कमला जी ने ऐतराज किया, नारायण कभी दरिद्र होता है क्या ? फिर द
अगर आप सास हैं, और अपने परिवार में सुख-शांति चाहती हैं, तो मेरी चार बातें ध्यान में रखिए। पहली बात, बहू और बेटी में फर्क मत डालिए। बहू को ही बेटी मानिए। दूसरी बात, कभी बहू से झगड़ा हो जाए, तो बहू के पीहर वालों को भला-बुरा मत कहिए। इसे बहू बर्दाश्त नहीं करेगी। तीसरी बात, मंदिर में बैठकर बहू की बुर
महाभारत के आदिपर्व में वर्णित वह कथा अत्यंत रोमांचकारी है। आठ वसुओं ने माता गंगा से प्रार्थना कि उन्हें शापवश धरती पर जन्म लेना होगा। अतः वे उन्हें स्त्री रूप में जन्म देने का अनुग्रह करें। गंगा ने उन्हें वचन दिया कि वे आठ वसुओं को जन्म देकर उन्हें शीघ्र ही उस शरीर से छुटकारा दिलाने के लिए जल में
’कृष्ण’ का मतलब जो सबसे अधिक आकर्षक है - वह शक्ति जो सब कुछ अपनी ओर खींचती है। कृष्ण वह निराकार केन्द्र है जो सर्वव्यापी है। कोई भी आकर्षण, कहीं से भी हो, कृष्ण से ही है। प्रायः व्यक्ति आकर्षण के मूल सत्व को नहीं देख पाते और बाहरी आवरण में उलझे रहते हैं। और जब तुम बाहरी आवरण को
हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करने वाला होता है। माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है। मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेवजी कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना
आयुर्वेद के मतानुसार शहद आठ प्रकार का होता है - (1) माक्षिक, (2) भ्रामर, (3) क्षौद्र, (4) पौतिक, (5) छात्र, (6) आध्र्य, (7) औद्दालिक और (8) दाल। इसमें छह प्रकार का शहद मधु-मक्खियों द्वारा तैयार होता है, अतः उनके नाम उनको बनाने वाली मधु-मक्खियों के नाम के आधार पर ही पड़े हैं। पीले रंग की बड
चीन के महान् नेता माओत्से तुंग ने अपनी जीवनी में लिखा कि मेरे घर में एक बगीचा था। वह इतना सुन्दर था कि लोग देखने आते थे। एक बार माँ बीमार पड़ गई। बीमारी मंे भी अपने से ज्यादा माँ को बगीचे की चिन्ता थी कि खिले फूल मुरझा न जायँ। माओत्से तुंग ने माँ से कहा- तूं चिन्ता मत कर, मैं बगीचे की देखभाल कर ल
प्रकृति ने इस धरती पर जो कुछ भी रचा है, उसमें से कुछ भी व्यर्थ नहीं है। सबकी अपनी-अपनी उपयोगिता है। जी हाँ, हम भी। भले ही हम सभी पेड़ों को एक जैसा मान लें, लेकिन वे एक जैसे होते नहीं हैं। यहाँ तक एक ही श्रेणी की वस्तुएँ एक जैसी नहीं होती। क्या आप विश्वास करेंगे कि खरबूजे तक के बारह सौ प्रकार होते
रक्त शुद्ध बर्हिश्र्वायु के पान के लिए सारे शरीर से सिमटकर हृदय में आता और वहां से फंुुफुसों में जाता हैं। शुद्ध होकर लौटता हुआ वह पुनः हृदय में आता है। हृदय इसे सर्वांग में पहुंचा देता है, वहां से पुनः हृदय में आता है। इस प्रकार के चक्र जीवन पर्यन्त निरन्तर हर पल चलते ही रहते है। रक्तानुध