जब भगवान् हमारे हैं और हमारे भीतर ही हैं तो फिर चिन्ता कैसी ? शोक कैसा ? वे सर्वसमर्थ हैं, उनकी महिमा का पारावार नहीं, तो फिर भय कैसा ? उनकी सत्ता से कोई बाहर नहीं, आंखों से कोई ओझल नहीं, तो फिर पश्चाताप कैसा ? इन बातों को अपने जीवन में उतार लेने वाले मनुष्य के आनन्द की कोई सीमा नहीं रहती।
महासागर हमारी पृथ्वी पर न सिर्फ जीवन का प्रतीक है बल्कि पर्यावरण संतुलन में भी प्रमुख भूमिका अदा करता है। पृथ्वी पर जीवन का आरंभ महासागरों से माना जाता है। महासागरीय जल में ही पहली बार जीवन का अंकुर फूटा था। आज महासागर असीम जैव विविधता का भंडार है। हमारी पृथ्वी का लगभग 70 प्रतिशत भाग महासागरों से
भक्त कबीर के पास जाकर एक व्यक्ति ने कहा मैं आत्म ज्ञान चाहता हूं। कबीर उसे लेकर गांव के पनघट पर गए, वहां पर कुएं से पानी लेकर कोई स्त्री अपने सिर पर दो तो कोई तीन घड़े लेकर जा रही थी। वे कभी रास्ते में रुक कर बातें करने लगती और कभी चलने लगती, कबीर ने उनसे पूछा-तुम बात करते हो, रुकती हो तुम्हारे घड़
महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत् कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। राजस्थान के कुंभलगढ़ में महाराणा प्रताप का जन्म महाराजा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंता के घर ई.स. 1540 में हुआ था। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्र
गर्मी से जन-जीवन बेहाल है, कड़ी धूप और पसीने वाली इस गर्मी से तो बारिश का मौसम ही निजात दिला सकता है। पशु, पक्षी, खेत सभी को मानसून यानि बरसात का इंतजार रहता है। आपकों भी बरसात का मौसम अच्छा लगता होगा। बारिश में भीगना और फिर चारों ओर फैली हरियाली देखकर मन कितना खुश हो उठता है। हिंद महासागर और
अच्छाई का अभिमान बुराई की जड़ है। स्वार्थ और अभिमान का त्याग करने से साधुता आती है। अपनी बुद्धि का अभिमान ही शास्त्रों की, सन्तों की बातों को अन्तः-करण में टिकने नहीं देता। वर्ण, आश्रम आदि की जो विशेषता है, वह दूसरों की सेवा करने के लिये है, अभिमान करने के लिये नहीं। आप अपनी अच्छाई का जितना अभिमान
भक्ति भय से नहीं श्रद्धा और प्रेम से होती है। भय से की गई भक्ति में भाव तो कभी जन्म ले ही नहीं सकता और बिना भाव के भक्ति का पुष्प नहीं खिलता। श्रद्धा के बिना ज्ञान प्राप्त हो ही ना पायेगा। श्रद्धा ना हो तो व्यक्ति धर्मभीरु बन जाता है। उसे हर समय यही डर लगा रहता है कि फलां देवता नाराज हो गया तो कु
गुरु जी प्रवचन कर रहे थे- ईश्वर में आस्था बनाये रखो। ईश्वर सबकी रक्षा करता है। चेला एकाग्रचित होकर एक-एक शब्द को हृदय में उतार रहा था। दूसरे दिन चेला जंगल से गुजर रहा था। सहसा एक आदमी सामने से दौड़ता हुआ आया। वह चिल्ला रहा था- बचो ! बचो! पगल हाथी इधर ही आ रहा है। चेले ने मन ही मन गुरु जी के शब्द द
’स’ और ’त’ इन दो अक्षरों से बना है ’सत्य’। ’स’ यानी बाहर की दुनिया का सत्य। जैसे नाक के साथ सुगंध, आँख के साथ दृश्य, कान के साथ ध्वनि, जुबान के साथ स्वाद, त्वचा के साथ स्पर्श, मन के साथ विचार। आज तक सिर्फ ’स’ को ही जाना गया है इसलिए लोग
भारत के ऋषियों ने जीवन के रहस्यों को जाना, उन्हें सुरक्षित रखा और आने वाली पीढ़ी को संप्रेषित किया। उनके द्वारा खोजी गई ये पद्धतियां धर्म, अध्यात्म और योग के नाम से आज भी प्रचलित है। प्रेक्षा-ध्यान उनमें से एक खोजी गई अभिनव पद्धति है, जिसमें अध्यात्म विज्ञान की विकसित शाखाओं का समुचित उपयोग किया ग