पूरे समुद्र का पानी भी एक जहाज को नहीं डुबो सकता जब तक पानी को जहाज अन्दर न आने दे। इसी तरह दुनिया का कोई भी नकारात्मक विचार आपको नीचे नहीं गिरा सकता जब तक कि आप उसे अपने अन्दर आने की अनुमति न दे दें।
इन्द्रियाँ अग्नि की तरह हैं। तुम्हारा जीवन अग्नि के समान है। इन्द्रियों की अग्नि में जो कुछ भी डालते हो, जल जाता है। यदि तुम गाड़ी का टायर जलाते हो, तो दुर्गन्ध निकलती है और वातावरण दूषित होता है। परन्तु यदि तुम चन्दन की लकड़ी जलाते हो, तो चारों ओर सुगन्ध फैलती है। कोई अग
चित्त जिसकी लालसा करता है उसे पाता है। जगत् में दो हैं- एक भोग पदार्थ और दूसरे भगवान्। चित्त भोग का चिन्तन करता है तो भोग मिलता है। भगवान् का चिन्तन करता है तो भगवान् मिलते हैं। चित्त भोग का या भगवान् का चिन्तन क्यों करता है? इसका उत्तर यह है कि शाश्वत सुख के लिये, अखण्
हम वही करना पसंद करते है जिसमे सफलता सुनिश्चित हो, हम मानते है कि जोखिम उठाना तो मूर्ख लोगों का काम है, हम हर नया काम हाथ में लेने से पूर्व कई बार सोचते है,यकीनन सोचना भी चाहिए परन्तु इतना भी ना सोचे की साहस का नष्ट ही हो जाये, हम ज्यादातर सावधान रहना पसंद करते है और छो
विशुद्ध सामथ्र्य इस तथ्य पर आधारित है कि व्यक्ति मूल रूप से विशुद्ध चेतना है, जो सभी संभावनाओं और असंख्य रचनात्मकताओं का कार्यक्षेत्र है। इस क्षेत्र तक पहुँचने का एक ही रास्ता है। प्रतिदिन मौन ध्यान और अनिर्णय का अभ्यास करना। व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ समय के लिए बोलने की
यह आमाशय से लेकर बड़ी आंत तक खुलने वाली लगभग 7 मीटर लंबी नली होती है जो नाभि क्षेत्र में बड़ी आंत से घिरी हुई होती है। इसका घोडे की नाल के आकार का लगभग 25 सेमीमीटर लंबा पहला भाग अग्नाशय के सिरे को चारों ओर से घेरे होता है उसे ग्रहणी या डयोडिनम कहते हैं। इसके बीच सामान्य प
किसी भी काम का शुभारंभ यानी गणपति की आराधना। इसीलिए आप शादी ब्याह के कार्ड पर इस मंत्र को देखते होंगे। यहीं वजह है कि मुहावरा यानी श्रीगणेश करना (किसी भी काम की शुरुआत करना) का जन्म इसी से हुआ। लिंगपुराण में भगवान शिव ने गणेश जी को कहा है कि गणेश तुम विघ्नविनाशक हो और त
जिंदगी में तनाव बहुत सी बीमारियों को जन्म देता है। इससे लोग डिप्रेशन का शिकार हो जाते है। दिल कमजोर पड़ता है और स्ट्रोक का खतरा भी बना रहता है। इसके लिए आपकों अपनी दिनचर्या में कुछ बातों कों शामिल करना जरूरी है ताकि आप तनाव से बचें रहे।
धर्मशास्त्रों में कलश को ब्रह्या, विष्णु, महेश और मातृगण का निवास कहा गया है। समुद्र मंथन से निकलने वाले अमृत को भी एक कलश में ही प्राप्त माना जाता है। ऋग्वेद में कहा गया है कि पवित्र जल से परिपूर्ण कलश देवराज इंद्र का सादर समर्पित है। मानव शरीर की कल्पना भी मिटटी के कल
चूड़ामणि नाम का एक भोलाभाला गरीब आदमी था जो खुद के लिए बड़ी मुश्किल से पेट भरने के लिए दो जून की रोटी जुटा पाता था। एक दिन चूड़ामणि ने विचार किया की उसे अब जंगल में जाकर तप करना चाहिए शायद उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान उसे खूब सारा धन दे देंगें। वह घनघोर जगल में गया और