Posted on 07-Aug-2016 11:42 AM
चित्त जिसकी लालसा करता है उसे पाता है। जगत् में दो हैं- एक भोग पदार्थ और दूसरे भगवान्। चित्त भोग का चिन्तन करता है तो भोग मिलता है। भगवान् का चिन्तन करता है तो भगवान् मिलते हैं। चित्त भोग का या भगवान् का चिन्तन क्यों करता है? इसका उत्तर यह है कि शाश्वत सुख के लिये, अखण्ड आनन्द के लिये। जो सुख या आनन्द अखण्ड नहीं है, बल्कि परिणाम में श्रम, क्लेश, भय, चिन्ता और दुःख प्रदान करता है, उसको उसी प्रकार ठीक-ठीक जान लेने पर चित्त उसकी इच्छा नहीं करता। जगत् के अनेकों संस्कार चित्त को भुलावे में डालते हैं, उनसे कभी चित्त में भोग की इच्छा जाग्रत् होती है और फिर भोगने के प्रति इच्छा का अभाव होकर भगवान् की इच्छा जाग उठती है। इस प्रकार चित्त का गड़बड़-घोटाला चला ही करता है। चित्तका यह भ्रम चिरकाल से है, इसलिये यह सहज ही दूर नहीं होता। चित्त एक बार सोचता है कि भोग की इच्छा नहीं करनी चाहिये, भोग का चिन्तन भी नहीं करना चाहिए, केवल भगवान् की ही चाही करनी चाहिये। इस प्रयत्न में उसकी परीक्षाएँ होती है। उसके सामने अनेकों भोग आकर खड़े हो जाते हैं। उसकी इन्द्रियाँ उनको भोगने के लिये उसे ललचाती हैं। इस अवस्था में यदि उसकी बुद्धि परिपक्क नहीं हुई होती है तो दीर्घकाली से हठपूर्वक भोग में रूचि हटाकर भगवान् में रूचि रखने वाला मन भगवान् को छोड़कर भोग में फँस जाता है। और एक बार भोग में पड़ा हुआ मन सहज ही नहीं निकलता। तपस्वी विश्वामित्र तथा दूसरे अनेकों, तपस्वी, जिन्होंने भोग मात्र का त्याग कर दिया था सहज ही भोग में फँस गये। हठपूर्वक भोग से हटाया हुआ मन भोग के लिये प्रबल आकर्षण होने पर तुरंत ही उसमें फँस जाता है। अतएव भोग का त्याग करने के लिये भगवान् की शरण लेनी चाहिये। भवगान् की प्राप्ति करने के लिये ओर भोग की इच्छा का त्याग करने के लिये जो भगवान् की शरण लेते हैं, उनकी रक्षा भगवान् स्वयं करते हैं। इसी कारण भगवान् का भक्त भोग का सहज ही त्याग करके आसानी से भगवान् को पा लेता है; क्योंकि भक्त का चित्त भोग का त्याग करने के लिये अपने बल का भरोसा नहीं करता। बल्कि उन भगवान् का बल ही उसका आधार होता है, जिनका बल अपार है और जो भगवान् की शरण में लेने वाले हठयोगी, विचारशील तथा अन्य साधक चित्तकी भोगेच्छा को छुड़ाने की चेष्ट करते हैं वे अपने ही अल्प बल का भरोसा करते हैं और इसी कारण उनकी चेष्टा निष्फल हो जाने की अधिक सम्भावना होती है। इसलिये मोक्ष की कामना करने वालों को चाहिये कि भगवान् जो सर्वत्र व्यापक, सर्वशक्तिमान्, सर्वज्ञ, सबके आधार, दयालु और भक्तवत्सल हैं, उनकी शरण लेकर, उनकी ही प्रार्थना करके, उन्हीं की दया के द्वारा मुक्ति पाने के लिये प्रयत्नन करें।