01-Jul-2015
विचार

इतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में। (विचार )

भोजन जूठा छोड़ना एक सामाजिक अपराध है। यह अच्छी आदत नहीं है। जूठा छोडने से अन्न को अपमान होता है। इससे महंगाई बढ़ती है। पर्यावरण प्रदूषित होता है। लाखों लोगों के मुँह से निवाला छीनता है। इसके अतिरिक्त अनेक नुकसान होते हैं। बढ़ती है। पर्यावरण प्रदूषित होता है। लाखों लोगों के मुँह से निवाला छीनता है


29-Jun-2015
विचार

मृत्यु को याद कर क्यों रोएं (विचार )

भगवान बुद्ध ने जब बता दिया कि चार महीने बाद वह परिनिर्वाण प्राप्त कर लेंगे, तो विहार में रहने वाले भिक्षु व्यथित हो उठे। सभी की आंखों में आंसू थे। धम्माराम नामक भिक्षु न व्यथित हुआ और न रोया। वह उसी समय से गहरे ध्यान में खोया रहने लगा। सबसे मिलना जुलना बंद कर एकांतवास करने लगा। भिक्षु उससे पूछते,


23-Jun-2015
विचार

पूजा क्यों करते हैं ? (विचार )

पूजा का मतलब एक ही है -इंसानी गुणों का विकास, इंसानी कर्म का विकास, इंसानी स्वभाव का विकास। आपने जो समझ रखा है कि पूजा के आधार पर यह मिलेगा, वह मिलेगा, यह सारी गलतफहमी इसलिए हुई है। पूजा केे आधार पर वस्तुतः दयानतदारी मिलती है, शराफत मिलती है, ईमानदारी मिलती है। आदमी को ऊँचा दृष्टिकोण मिलता है। अग


15-Jun-2015
विचार

दुःख विलिन हो जाएगा (विचार )

इंसान का बाहरी शरीर तो सभी को दिखाई देता है लेकिन उसकी नींव यानी उसका चरित्र कैसा है, यह बाहर से पता नहीं चलता। जैसे पुस्तक का सिर्फ कवर देखकर उसका महत्व नहीं बताया जाएगा बल्कि उसके अंदर जो लिखा हुआ, जो छपा हुआ और जो छिपा है, वही ज्यादा काम में आता है। अर्थात बाह्म स्वरूप देखकर कोई जान नहीं सकता


13-Jun-2015
विचार

ध्यान में हमें गहन गोता लगाना सिखलायें (विचार )

दिव्य क्राइस्ट, हमारे अंदर आपकी चेतना को पुनर्जीवित करें। हम आपकी अनन्तता को अपने अंदर व अपने से बाहर जान पाने में सक्षम हो। जैसा कि स्वयंभू प्रभु पवित्रात्मा में पुर्नजीवित हैं, वैसे ही हम भी अज्ञान के मकबरे से ज्ञान के अनन्त प्रकाश में जाग्रत हों। हम आशा करते है कि हमारी आत्मा ईश्वर में जाग्रत


12-Jun-2015
विचार

विकलांगों की सेवा, यही है-लोक कल्याण (विचार )

लोक-कल्याण की भावना, हमारे जीवन का लक्ष्य है, पीडि़तों, असहायों, निर्धनांे, विकलांगों की सेवा, यही है, लोक कल्याण, आज के भौतिकतावादी और अर्थवादी युग में, अर्थ के बिना, लोक-कल्याण के कार्यों में, रूकावटें आती हंै इन रूकावटों को समर्थ और सम्पन्न, महानुभावों द्वारा, उदार दान- सहयोग से दूर किया जा सक


12-Jun-2015
विचार

देने का सुख (विचार )

स्वामी रामतीर्थ के जीवन की एक घटना है। भ्रमण एवं भाषणों से परिश्रांत स्वामी जी अपने निवास पर लौटकर- थोड़ा सा ही आटा था उसकी रोटियाँ बना रहे थे, चूंकि वे अपना भोजन स्वयं बनाते थे। जब वेे थाली लगाकर भोजन करने के लिए बैठने लगे तभी कुछ भूखें बच्चें आकर खड़े हो गये। स्वामी जी ने अपनी सारी रोटियाँ एक-ए


07-Jun-2015
विचार

समय का मूल्य (विचार )

एक वर्ष की कीमत उस विद्यार्थी से पूछें जो फेल हो गया है और जिसे 365 दिन उसी क्लास में ग्लानी के साथ गुजारने हैं।एक हफ्ते की कीमत पूछें उस फिल्म प्रोड्युसर फाॅयनेन्सर अथवा डायरेक्टर से जिनकी नजरें पहले सप्ताह के कलेक्शन पर रहती है।एक दिन की कीमत पूछें उस मजदूर से जि


06-Jun-2015
विचार

भय स्वयं ही एक दोष है (विचार )

वर्तमान में अपने को अथवा दूसरे को निर्दोष स्वीकार करना भी युक्तियुक्त है। यही वास्तव में न्याय है। न्याययुक्त जीवन से समाज में अपने प्रति न्याय करने की सद्भावना स्वतः जाग्रत होती है, जिसके होते ही, दोष को ’दोष’ जानकर, उसे त्याग करने का सद्भाव स्वतः अभिव्यक्त होता है। किसी भय से दोष का


05-Jun-2015
विचार

धर्म-कर्म में यकीन करने वाले ज्यादा सफल (विचार )

पूजा-पांठ करने और धार्मिक आयोजनों में शामिल होने से तनाव के स्तर में कमी आती है। बेलर युनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की मानें तो इसका असर आॅफिस में इन्सान के प्रदर्शन पर भी दिखता है। वह न सिर्फ काम में ज्यादा मन लगा पाता है, बल्कि उत्पादन क्षमता बढ़ने से उसके प्रमोशन और वेतन-वृद्धि की संभावनाएं भी बढ़